Book Title: Jain Tark Sangraha Jain Muktavali cha
Author(s): Vijaynandansuri
Publisher: Godi Parshwanath Jain Temple Trust
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१३६
१.९:१३६
शब्दः ।
पृष्ठम् ।। शब्दः ।
पृष्ठम् । तीर्थ ६३,१३५,१३६
द्रव्यार्थिकनय तीर्थकृत्
११९ १२२,१२३,१३३,१३४ तीर्थङ्कर
द्रव्यार्थिकाभास १३२ तीर्थनायक
द्रव्येन्द्रिय
..१०३ तीर्थसिद्ध
धर्मः ६२,७३,८१,८२,८३,१३१ तेजःपर्याय
धर्मास्तिकाय तैजस्
.. १३७ १४१,१४२
__७४;७५,८१:८२,८३:१:४९
धातकीखण्ड तैजसी दर्शन
धारणा ६४,८५,९०,१३५;
८६:८७,१०६
धारणात्व १३८,१३९,१४८१४९
१०६ दर्शनावरण
८६,८७,८८ १० ध्रौव्य
. ६५ दर्शनावरणीय
नभःप्रदेश दर्शनोपयोग
नय .१२२,१२३,१२४;१३० दिक्कुमार दीपपर्यायापन
१३१,१३२ नयज्ञान . १३०
नयप्रतिबिम्बात्मन् दुर्नय १२३;१२४,१
नयविवेक देश
७६,१४७ देशविरति
नयसप्तभङ्गी द्रव्यजीव
१३४
नयाभास द्रव्यनिक्षेप
१३३ नयान्तर
नाग (-कुमार) १४० द्रव्यार्थिक १३०,१३१,१३४ नाम १३२,१३३,१३६,१३७ द्रव्यार्थिकगुणभाव १२३ । नामकर्म
१३७
V
१४०
द्वीप
Domy
१२३ १३२
द्रव्याचार्य
१३३
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