Book Title: Jain Tark Sangraha Jain Muktavali cha
Author(s): Vijaynandansuri
Publisher: Godi Parshwanath Jain Temple Trust

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Page 265
________________ २२० पृष्ठम् । । पृष्ठम् । बह्ववग्रह बादर . c. Name १३६ शब्दः। शब्दः । पूर्वाङ्ग बहु . ८६,८७ पोतज बहुविध ८६८७ पौद्गलिक ११९,१२०१३७ . ८७ पौद्गलिकत्व ७४,१०५ १३९;१४० प्रकृति १३७:१३८ बीजबुद्धि प्रकृतिबन्ध १३८ बुद्धबोधित प्रत्येकबुद्ध १३६ ब्रह्मलोक प्रथमगणधर भवनपत्यादि प्रदेश ६५,७६,८२,८३,८४; भवनवासिन् १३७,१३८ •भव्य .. ६२६३ प्रदेशत्व १४८,१४९ भाव १३२ प्रदेशबन्ध १३८ भावनिक्षेप १३३,१३४ प्रदेशसङ्घात ७६ भावश्रुत. प्रदेशान्तर ६५,८२ भावेन्द्र · , १३३ प्रमत्त १३५ भावेन्द्रिय १०४ प्रमाणसप्तभङ्गी भाषा १३७१४१ प्रवचन ६३,१०९,१३६ भूत प्रवचनसिद्ध १४९ मति ८६,८८,१०५,१०६,१०७ प्राक्प्रयोगादि १३५ मतिज्ञान ८६,८८,१०६:१०७ प्राणत १४० मतिज्ञानत्व . १०५ ८४१३८ मतित्व बन्धक १३८ मत्यज्ञान बन्धच्छेद मनःपर्यव बन्धन १३८,१४२ । मनःपर्याप्ति १०७ १२३ बन्ध

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