Book Title: Jain Tark Sangraha Jain Muktavali cha
Author(s): Vijaynandansuri
Publisher: Godi Parshwanath Jain Temple Trust

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Page 258
________________ १.१०७ V 22 १०७ सवृत्तिक-जैनमुक्तावलीगत-पारिभाषिकशब्दसूचिः॥ शब्दः । पृष्ठम् ।। शब्दः । पृष्ठम्। अक्षर (-श्रुत) अध्रुव अक्षिप्र अनक्षरश्रुत अक्षीणमहानसर्द्धि अनङ्गप्रविष्ट अगमिक अनन्त (-श्रुत) अगुरुलघु १४३, १४४; १४५; अनन्ताऽसङ्ख्यात सङ्ख्यात१४६; १४९ भागगुणवृद्धि १५० अगुरुलघुत्व १४८; १४९ अनन्ताऽसङ्ख्यातसङ्ख्यातअगुरुलघुद्रव्य .. १५० __ भागगुणहानि १५० अग्नि (-कुमार) अनन्तानुबन्धि १३८ अङ्गप्रविष्ट अनपवर्तनीयत्व अङ्गप्रविष्टक अनभिलाप्य अङ्गबाह्य अनवस्थित 'अङ्गबाह्यप्रविष्टक अनाकार अङ्गाऽनङ्गप्रविष्ट अनादि (-श्रुत) १०७ अङ्गोपाङ्गादि अनानुगामिक अचक्षुर्दर्शन अनिवृत्तिबादरसंपराय... १३५ अचक्षु (-दर्शन) अनिश्चित अच्युत अनिश्रित - ८६:८७,८८ अतिशयवद् ८८ अनुदय अतीर्थ १३५; १३६ अनुपलब्धि ११६:११७ अतीर्थकर ११,८,११९ अतीर्थसिद्ध १३६ अनुभाग १३७,१३८,१३९ अधर्म ६२;७३,८२,१३१ अनुभागबन्ध अधर्मास्ति काय ७४;७६;८२ । अनेकसिद्ध 0 GM 0 0 १३९ mmm vur .

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