Book Title: Jain Tark Sangraha Jain Muktavali cha
Author(s): Vijaynandansuri
Publisher: Godi Parshwanath Jain Temple Trust
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२११
२६ ।
विभाव
शब्दः । पृष्ठम् । | शब्दः ।
पृष्ठम् । मनःपर्याय
वर्तनाहेतृत्व मनःपर्यायज्ञानाबरण
वालुका-प्रभा) मनःपर्याप्ति
विकलाक्ष
२५२६ मनोवर्गणा.
२४:२६ विपरीतसूत्रण महाव्रत
..८५२
विभावगुणव्यञ्जनपर्याय ५२५३ मिथ्यात्व मिथ्यात्वमोहनीय
विभावद्रव्यव्यञ्जनपर्याय ५२,५३ मिथ्यादर्शन
विभावपर्याय मुक्तियोग
विरत मृषावाद
विरति
२:५३:५६ मृषावादंविरमण
विरमण मैथुनविरंभण
वीर्यान्तराय मोहजय
२३ मोहनीय
क्रिय
२४,२५ योगनिरोध
वैक्रियवर्गणा २४,२५. योनि
वैमानिक रत्न (-प्रभा) .
व्यानपर्याय
५२,५३:५४ लब्धिपर्याप्त
व्यञ्जनावग्रह
...३२ लब्ध्यपर्याप्त
व्यन्तर लब्ध्युपयोग
व्यय
५:१८ लोकाकाश
व्यवहार
४८,४९ वचनातिशय
व्यवहारनयमत वर्गणा २४,२५,२६ शब्द
४८,४९ वर्तना. १३,१४,५१ । शम
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