Book Title: Jain Tark Sangraha Jain Muktavali cha
Author(s): Vijaynandansuri
Publisher: Godi Parshwanath Jain Temple Trust
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२०४
पृष्ठाङ्क।
पृष्ठाङ्कः ।
२४:२९
शब्दः। चतुरिन्द्रिय चतुर्दशरज्ज्वात्मकलोक चरित्त चारित्र
शब्दः । कर्मपुद्गल कर्मपुद्गलस्कन्ध कर्मबन्ध कर्मयोग कर्महेतुक कार्मण कार्मणवर्गणा केवल केवलज्ञान
जिन
२३.
२४ २३,२४,२५
२,४,२२,३३;
३४,५८
३३
केवलज्ञानावरण केवलित्व
केवलिन्
जिनप्रवचन जिनसिद्ध जीवद्रव्य ७; २०, २१, ५२, ५३ जीवस्थिकाए जीवास्तिकाय . ६, १३. जीवास्तिकायत्व ज्योतिष्क ज्ञानयोग ज्ञानातिशय ज्ञानावरण । २३; ३१; ३४; ३६ तत्त्वश्रद्धा तत्त्वश्रद्धान
. ५७ तमः (-प्रभा)
... २८ तमस्तमः(-प्रभा).
. ३, २२ तीर्थकरबिम्ब
३१,३३,३४,५७ ३१,३३,३६,५७
क्रमभाविन् क्रोधोपशम क्षय क्षयोपशम क्षायिक क्षायो पशमिक गर्भज गतिहेतुत्व गृहिधर्म गृहिलिङ्गसिद्ध गोत्र प्रन्थिभेद
तीर्थ
तीर्थकृद्
३, १३
तीर्थप्रणेत २३, २४
तीर्थस्थापन ५८ । तीर्थसिद्ध
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