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(१६)
सं०
पृष्टांक
१६०
१७१
१४५
४३७ सुनरे तूं चेतन प्यारे ४३८ सुनिये प्रभु विनय ४३६ सुनो रावण मेरी ४४० सुनो सब जहां के ४४१ सुनो सुजान सत्य की ४४२ सुन्दर झूो जग लियो । ४४३ सुन्दर सांचीए २ जो पति ४४४ सुन्दर हित की दूं मैं .. ४४५ सुमति जव श्रादेगा ४४६ सुयश लीजरे २ मनुष्य : ४४७ सेलानी जीवड़ा क्यों हूं ४५८ सोये हो किस नींद में ४४६ सोच दिल में जर... ४५० सोच नर इस भूठ से" ४५१ सोबत सन्तन की ऐसी . ४५२ संयम धारी महाराज ४५३ संसार है असार तूं ४५४ स्वामी मेरा कैसा जबर
२५० २२५ २००
२८४ १३५ २५३
२०५ १६७
२६०
४५५ हे प्रभु पार्श्व जिनन्द ४५६ हो मार्गमानो क्यों नहीं ४५७.हो सरदार थेंतो दारुड़ा ४५८ हंसजी आठ कर्म के ४५६ सजी थे मत जावो
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