Book Title: Jain Subodh Gutka
Author(s): Chauthmal Maharaj
Publisher: Jainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam

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Page 13
________________ पृष्टाङ्क २५७ १४७ गुरु तीरने का मार्ग १४८ गुरु मुझे ज्ञान का प्याला १४६ गौतमजी कर अभिमान '२४ ३०७ २२५ २१० २८७ ''२७५ १५० चतुर न कीजो संग चौथा १५१ चले जाओगे दुनिया से १५२ चाहे अगर आराम तो तूं १५३ चाहे जाओ दिल्ली कोटा १५४ चाहे जितनी तूं तजबीज '. १९५५ चेत चेत रे चतुर २५६ चेतो चेतोरे चेतन मिली १५७ चेतो तो जल्दी चेतलो १५८ चेतन अब चेते अवसर •९५६ चेतन निज स्वरूप ९६० चेतन थारे २ नहीं चेते १६१ चेतन दुनियां में देखो . १६२ चेतन पाके मनुष्य जन्म ९६३ चेतन यह नर तन .१९५ २४७ २०० : ३३४ ૨૭. पत १६४ छोड़ अज्ञानीरे १६५ जगत के बीच नारी की २६६ जब गया बुढ़ापा बाई है १६७ जाग बटाऊ क्यों करे मोड़ो । २६ जाती है उन तुम्हारी

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