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Celebrating Jain Center of Houston Pratishtha Mahotsav 1995 चला जाता है । बादलों से ढंका हुआ सूर्य प्रकट होने लग जाता है और एक दिन वह पूरा का पूरा प्रकट हो जाता है। यह है परमात्मा की स्थिति । जैसे-जैसे हम परमात्मा की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे शक्ति के अवरोध समाप्त होते चले जाते हैं । वे ऊबड़-खाबड़ भूमि में होते हैं । समतल में कोई अवरोध नहीं होता । समता के चरम बिन्दु पर पहुंचते ही सारे गढ़े भर जाते हैं और शक्ति के सारे स्रोत प्रवाहित हो जाते हैं । यह है परमात्मा की स्थिति ।
जैसे-जैसे हम परमात्मा की ओर बढते हैं वैसे-वैसे आनन्द का सागर लहरा उठता है । आवेश और एषणा के समाप्त होते ही विकृति के तूफान शांत हो जाते हैं । आनन्द के सिन्धु की ऊर्मियां आत्मा के चरण पखारने लग जाती हैं । यह है परमात्मा की स्थिति ।
शिष्य ने पूछा - 'गुरुदेव ! मैं परमात्मा कैसे बन सकता हूं ।'
गुरु ने उत्तर दिया – 'तुम परमात्मा बनना चाहते हो तो उसका ध्यान करो । उसे देखते रहो । परमात्मा का ध्यान नहीं करने वाला कभी परमात्मा नहीं बन सकता । परमात्मा वही बन सकता है जो परमात्मा को देखता है, उसका मनन करता है, उसका चिन्तन करता है ओर उसमें तन्मय रहता है ।
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परमात्मा के प्रति होने वाली तन्मयता आत्मा में छिपे हुए परमात्मा के बीज को अंकुरित करती है और वे अंकुर बढ़ते-बढ़ते स्वयं परमात्मा बन जाते हैं ।
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"Thinkeright, act right, it is what you think and do that makes you what yoware"
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