Book Title: Jain Society Houston TX 1995 11 Pratistha
Author(s): Jain Society Houston TX
Publisher: USA Jain Society Houston TX

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Page 163
________________ Celebrating Jain Society of Houston Pratishtha Mahotsav 1995 क्यों करें मौन ? किसी व्यक्ति ने एक घंटे का मौन किया और एक साध्वी श्रुतयशा घंटे के दौरान ॐ ॐ की अव्यक्त वाणी में उसने एक प्राचीन रूपक है । एक आभूषण पेटिका सारा कार्य जारी रखा, तो क्या वह मौन उसके में नैकलेस एवं नपुरों का वार्तालाप हुआ । नपुरों ने लिए विशेष फलदायक होगा ? क्या उस पौन से अपनी व्यथा को उंडेलते हुए कहा -भैया! हम दोनों शक्ति का अपव्यय नहीं होगा, क्या वह मौन एक ही घर में जनमे हैं, एक साथ रहते हैं। दोनों उसको वासंवर की दिशा में आगे बढाएगा ? का प्रयोजन भी एक ही है - मनुष्य के शरीर को ये ऐसे अहम् प्रश्न हैं जो हमें मौन के अर्थ को विभूषित करना । पर मनुष्य हमारे साथ भेदभाव समझने के लिए प्रेरित करते हैं । का व्यवहार करता है । वह मुझे कभी गले नहीं शरीरशास्त्रीय दृष्टि से मौन का अर्थ लगाता । नैकलेस ने कहा- भैया ! इसमें मनुष्य है स्वरयंत्र का कायोत्सर्ग । एक शब्द के उच्चारण का दोष नहीं है। में मनुष्य के शरीर की सैंकडों मांसपेशियों को ___ यदि तुम भी मेरी तरह मौन रहना सीख जाओ कार्य करना पडता है । उस संचालन प्रणाली का तो हर व्यक्ति तुम्हें गले लगाएगा। तुम्ह किसी के मुख्य दायित्व निर्वहन करना पडता है स्वरयंत्र चरणों का दास नहीं बनना पडेगा । वस्तुतः को । मनुष्य का स्वरयंत्र निरन्तर स्पन्दन करता मूल्यांकन का एक आधार है- वाणी । अल्पभाषिता रहता है, कार्यरत रहता है । उसे एक क्षण भी व्यक्ति की महत्ता को शतगुणित करती है। विश्राम का अवकाश नहीं । हर दिन वर्किग डे जीवन को कलात्मक बनाने के अनेक आयाम है । स्वरयंत्र को यदि शिथिल करना है तो व्यक्ति है, उनमें एक है- वाणी और मौन का संतुलन । को मौन का अभ्यास करना होगा । यदि व्यक्ति मौन केवल आध्यात्मिकता का ही सूत्र है, प्रतिदिन एक घंटा भी स्वरयंत्र को शिथिल करने व्यावहारिक जीवन में भी उसका बहुत महत्त्व है। का प्रयास करने में सफल हो जाए तो वह अपनी जो समय पर चुप रहना नहीं जानता, वह जीवन में बहुत सी शक्ति का अपव्यय होने से रोक सकता सफलता को हासिल नहीं कर सकता । प्रगति की है। दौड़ में सतत् गतिमान रहने के लिए विविध प्रकार जैन दर्शन की भाषा में मौन का अभिप्राय है के प्रबन्धन की शिक्षा से विधियों का विकास -वाक् गुप्ति । प्राणी की प्रत्येक प्रवृत्ति चाहे वह किया जा रहा है पर जो यह नहीं जानता कि क्या शारीरिक हो, वाचिक या मानसिक हो, बोलें, कैसे बोलें, कब बोलें और क्यों बोलें,वह कर्मपरमाणुओं को आकृष्ट करती है । मौन करने ईश्वर प्रदत्त इस वाक् वरदान से लाभान्वित नहीं हो वाला व्यक्ति वाचिक प्रवृत्ति से आने वाले कर्मपाता एवं जीवन सुख एवं शान्ति की अनुभूति से मल से आत्मा को बचा लेता है, कर्म वर्गणा के वंचित रह जाता है। आगमन को रोकता है । गुप्ति जैन साधना पद्धति ___मौन का सामान्य अर्थ है-न बोलना या बोलने का मूल है,क्योंकि जैन संस्कृति निर्वृत्ति प्रधान का त्याग करना । स्थूल दृष्टि से यह ठीक है पर संस्कृति है । यदि व्यक्ति संवर की साधना में जब तक हम मौन की अर्थात्मा तक नहीं पहुंचते, अग्रसर नहीं होता तो उसकी तपः साधना भी उसकी सार्थकता भी साबित नही हो पाती। यदि हस्तिस्नानवत् रह जाती है। "Blessed are our enemies, for they tell us the truth when our friends tell us lies" (Author Unknown) Page 147 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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