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Celebrating Jain Society of Houston Pratishtha Mahotsav 1995
अतः मोक्षमार्ग का मुख्य तत्त्व है- सम्यक् प्रकार से बुद्धि एवं श्रद्धा पूर्वक मन, वचन और काया को उन्मार्ग से रोकना और सन्मार्ग पर प्रस्थित करना । भौतिक विषयों एवं कषाय आदि की सावध प्रवृत्ति से वचन का निरोध, वाणी का नियमन ।
आध्यात्मिक दृष्टि से मौन का प्रयोजन है - अन्तर्दृष्टि का विकास। बहिर्मुखता साधना का सबसे बडा विघ्न है, क्योंकि उसके कारण व्यक्ति अपने अन्दर सतत् प्रवहमान सत्, चित्त और आनन्द की त्रिवेणी का अनुभव नहीं कर पाता । मौन करने वाला व्यक्ति निर्विचारिता की दिशा में अग्रसर होता है, क्योंकि वाणी ही विकल्पों एवं विचारों की जननी है । भगवान् महावीर से इन्द्रभूति गौतम ने पूछा- भंते! वचन-नियमन से क्या लाभ होता है ? भगवान् ने उत्तर दिया - गौतम ! जो वाणी का निग्रह करता है वह निर्विचारिता को उत्पन्न करता है । और निर्विचारिता ही अध्यात्मयोग एवं साधना का मूल है । आत्मस्थ वही हो सकता है जो अन्तर्मुखी हो निर्विकल्प एवं निर्विचार हो । इस दृष्टि से अध्यात्म की अहम अपेक्षा है मौन ।
प्रश्न हो सकता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । उसका जीवन द्विविध-आयामी है । वह केवल वैयक्तिक या आध्यात्मिक स्तर पर नहीं जी सकता। उसके लिए संबंध, समाज और व्यवहार भी उतने ही अपेक्षित हैं । व्यवहार वाणी पर आधारित है तो क्या मौन उसके सामाजिक जीवन में बाधक नहीं ? बोलना व्यावहारिक क्षेत्र की आवश्यकता है - यह जितना सत्य है उससे कहीं अधिक सत्य हैसमय पर मौन रहना सामाजिकता का भूषण है । आग्रह एवं विग्रह की अभिव्यक्ति का प्रथम साधन है वाणी, झगडे की जड है वाणी, कोध की अग्नि का प्रमुख ईंधन है - वाणी । यदि एक समाज के अधिकांश व्यक्ति वाणी के दुष्प्रयोग से बचते रहें तो सामाजिक जीवन में कडवाहट के अधिकतर प्रसंग स्वतः मिट जाएं । यदि एक व्यक्ति रोषारुण होकर
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बकवास करे, उस समय दूसरा मौन रहकर अपने विवेक का परिचय दे सके तो प्रतिपक्ष के अभाव में कोध स्वयं समाप्त हो जाता है । इसीलिए विग्रह - शमन के तीन उपाय बताए जाते है
१. मौन २. श्वास-निरोध ३. स्थान- परिवर्तन |
दूसरे एवं तीसरे उपाय की उपयुज्यता तभी होती है जब व्यक्ति मौन न कर पाए ।
मौन साधना के अनेक प्रकार हो सकते हैं - १. एक निश्चित समयावधि तक बिल्कुल न बोलना, बोलने का त्याग करना । २. अनावश्यक न बोलना । ३. आवश्यक होने पर अल्प, मधुर एवं सोच – समझ कर बोलना । ४. असत्य एवं संवेगप्रधान ( कषाय- युक्त) वाणी न बोलना ।
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पर्युषण पर्व अध्यात्म साधना का पुनीत पर्व है । इस अवसर पर मनुष्य यदि इन विविध मौन विधियों का यथोचित प्रयोग करने के लिए संकल्पबद्ध हो, समय-समय पर उनका प्रयोग करता रहे तो उसका जीवन कलापूर्ण बन सकता है । मानव-मानव में इस कला के प्रति अभिरुचि जागृत हो, ऐसी मंगलकामना है।
मंगलकामना
हमनहीविगम्बर, श्वेतामबर, तेरहपंथी, स्थानकवासी
"It is possible to learn things from an enemy that you cannot learn from a friend"
(Mahatma Gandhi)
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सब एक पंथ के अनुयायी, सब ओक देव के विश्वासी हम जैनी, अपना धर्म जैन, इतना ही परिचय केवल हो हम यही कामना करते है, आने वाला ऐसा कल हो
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