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जब जुदी कौम और मजहबके आदमी भातृभावके साथ एक जगह इकठे होकर हर बातकी दलील तकरीर करके उन्नति करने पर कमर बांधते है, तो क्या अपनी जाति और धर्मके मनुण्य इकठे होकर स्वधर्मकी तरक्की और जातिका प्रबन्ध नहीं कर सकते है ?
दरेक कोम अने धर्मना माणसो पोताना उत्थान माटे कदम उठावे अने मारो समाज पाछळ रहे ? जैन समाजनी प्रगति माटेतेना संगठन माटे कोई भगीरथ प्रयत्न थवो जोईए. जैन समाजमा उच्च शिक्षणनो फेलावो करवा, जैन तीर्थोनुं रक्षण करवा, प्राचीन अमुल्य जैन साहित्यनो उद्धार करवा, समाजमांथी कुरिवाजो दूर करवा, जैन कोमना अवाजने जोरदार रीते रजू करवा अने जैन समाजना परंपरागत जाज्वल्यमान गौरवने टकावी राखवा नवयुगने अनुरूप भारतना समस्त जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक समाजनी एक महान संस्था स्थापवी जोईए. दिवसे दिवसे युवक पोताना विचारोमां मक्कम थतो गयो. पोतानी भावनाओने मूर्तिमंत करवानां स्वप्नो सेवतो ते पोताना मनमा अनेक योजनाओ घडतो हतो. परंतु समस्त भारत वर्षना जैन समाजने एकत्र करवान कार्य नानुसूनुं न हतुं.
कठिनाइओथी अने मुश्केलीओथी डरे तेवो आ युवान नहोतो. तेनी नसोमां राजस्थानना शूरवीर राजपूतोनुं लोही वहेतुं हतु. संग्रामथी भागी छूटे ते शूर नहि. तेना दिलमां प्रकटेलो आतश वधुने वधु झगारा मारवा लाग्यो. तेनुं हृदय पुकारी रह्यु हतुं "आगे बढो". तेना दिलमां समाजसेवानी-जैन समाजना उत्थाननी तालावेली लागी हती.
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