Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 12 1949 01
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५ १४ तख(कुख)गि सयल जग जि(जी)यह उप्पाइओ संमोहु ॥२॥ ताम चिंतिउ ति(? तत्थ इंदेणं हं(? हुं) सव(य)लमंगलनिहिहि (हः)। मे (? मोहिमकव्व(? ज) संपइ समुट्ठय । किमकंड विदर डमर, संतिकरण धेयाल उद्विय । हुं नाय सवायरिण जाणाविउ निभंतु । मह मूढह करि वीरजिणि नियबलु एव महंतु ॥ ३॥ ताम तख(क्ख)गि खुदियमणभंति । भत्तिभरभरियतणु आणवेइ सुरयण सुरेसरु । जिम पुट्विं रिसह जिणु तह लहु न्हवेउ वीर वि जिणेसरु । चउव्वीस वि जिण इक्कबलु गुणह न अस्थि विसेसु। तम्मज(ज्ज)णि कज्जुज्जियह खिज्जइ काम( य)किलेसु ॥ ४ ॥ ताम सुरवइयणसंभंत सहस च्चिय सुरअसुर सुपसत्थतित्थस्थनीरह । भरिऊग मगिमयकलस कुणहु न्हवण समकाल वीरहे(ह)। पसरियपडु पडरवरविण भुवणभंतर पूर(? रु)। अप्फालिय तियसेहि तहि चउविह मंगल तुरु ॥५॥ जेहि न्हविउ पुवकालंभि । य(१ जे) हि सत(? म)उ सुरवरिहि । 'मेरु' सिहरि चउसट्टि इंदिहि वज्जति बहुविहि हि । पडह-करडि-मद(६)ल-मयंगिहि ।। भवियतो(लो)य तो( ? लो )डापुरिहि भाविहि वोरु न्हवंति । जे पिच्छहि सुकयत्थ नर! ते सिवसुह पावंति ॥६॥ संति संघह संति नयरस (स्स) संति होउ जिणवणियवग्गह । इह देसह नरवरह संति होउ जिणन्हवणि लागह । नंद दुरावलि अवहरउ सोलह विज्जाएवि (१ वी)। नवगह दुरिउ अवहरउ ननिगु भणेइ न्हवेउ । जलिहि महाजलकल्लोलवल्लिउच्छलियनीरपप्रा(भा)रा। जिणन्हवणं कुणउ सवा महानई निम्मिया तुज्झ । अहिणवेहि कणयकलसे हि खीरोयभरिएहो सुरवरहिं करियलि घरेविणु। अहिसित्तउ वीरजिणु 'मेरु' सिहरि 'जय जय' भणेविणु ॥७॥ बालत(त्त)णमि सानिय 'सुमेरु' सिहरमि कणयकलसेहिं । तियसासुरेहि हविउ(ओ) ते धन्ना बेहि दिहो सि ॥ ८॥ For Private And Personal Use Only

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