Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ॐ अहम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र श्री जैन सत्य प्रकाश जेशिंगभाईकी वाडी : घोकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात) वर्ष १३ || fun . २०० : ४ वीनि. स. २४७४ : छ.स. १७७ ॥ क्रमांक अंक २ ॥ ति। शुद्ध : शनिवार : १५भी ना२ ॥ सम्यक्त्वकुलकम् । सं०-पूज्य मुनिमहाराज श्रीकान्तिविजयजी वेसागिहेसु गमणं महाविरुद्धं जहा कुलवहूणं । जाणाहि तहा सावया(य)सुसावगाणं कुतित्थेसु ॥ १॥ भणइ जणो नारीणं सइत्तणं कत्थ वेसगिहगमणे । एवं कुतित्थगमणे सम्मत्तं सावगस्स कहं ? ॥२॥ किर धम्ममि कुसलओ सुसावगो सो वि आगओ इहई । तम्हा एस पहाणो सिवाइभणिओ य जो धम्मो ॥३॥ एवं तब्भत्ताणं थिरकरणं कुणइ तत्थ वच्चंतो । वद्धारइ मिच्छत्तं सुबोहिबीयं हणइ तेर्सि ॥ ४ ॥ अन्नेसिं सत्ताण मिच्छत्तं जो करेइ मूढप्पा । सो तेण निमित्तेणं न लहइ बोहिं जिणाभिहियं ॥ ५॥ सो परमप्पाणं चिय पाडेइ दुर(रु)त्तरंमि संसारे । मिच्छत्तकारणाई जो नवि वग्जेइ दूरेणं ॥ ६ ॥ चिंतामणि व्व दुलह सम्मत्तं पाविऊण अन्नेहिं । तं हारवेइ जीवो लोइयतित्थेसु तेण ॥७॥ दसणविराहगाणं तल्लाभुक्कोसणंतकालाओ। तम्ही दंसणरयणं सव्वपयत्तेण रक्खंति ॥ ८॥ जह सियवडेण रहियं न तरइ भवसायरंमि बोहित्थं । तह सम्मत्तेण विणा किरियरुइ न तरइ भवोहं ॥ ९॥ जह व विण्डे तुंबे साहारो नेय होइ अरएहिं । तह सम्मत्तेण विणा ताणं च न होइ चरणेण ॥१०॥ For Private And Personal Use Only

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