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अटेवन सथित भनाइशान थितार तब उसे तुम यहबोलना-'तो फिर मामेमशत २० थाय छे. शुसत्या - भन्ते ? पृथगूजन (=अज्ञसंसारी जीव ) यन महाशय वस्तु प्रिय छ ? यहि से ( तथागतका ) क्या भेद हुआ, न होय तो मार्बु विवाहाप साहित्य पृथगूजनभी वैसा वचन बोल सकता है. પ્રકાશિત કરવામાં લગારે સલામતિ નથી यदि ऐसा पुछनेपर तुझे श्रमण गौतम भाट पुन: साइरसूयना आई साडि कहे-राजकुमार? नहीं बोल सकतहै। સત્યને કસોટીએ કસ્યા વિના પ્રકાશિત
___ तब तुम उसे बोलना तो भन्ते ? न ४२२.
आपने देवदत्तके लिये भविष्यवाणी सुद्धयो . पृ. ४५६.
क्यों कि है.--'देवदत्तअपायिक (=दुर्गसमयभार सुत्त ([.५ ४०३) तिमें जानेवाला ) है, देवदत्त नरयिक
ऐसा मैने सुना-एक समय भगवान् ( नरकगामी ) है, देवदत्त कलपस्थ राजगृहमें वेणुवन कलन्दक-निवापमें - ( कलपभर नरकमें रहनेवाला) है, विहार करते थे.
देवदत्त अचिकित्स्य (लाइलाज ) है. तब अभय-राजकुमार जहां निगंठनात-पुत्त (भगवान महावीर ) थे, वहां आपके इस बचनसे देवदत्त कुपित गया । जाकर निगंठनात-पुत्तको अभि- असंतुष्ट हुआ' वादनकर एक और बेठा एक और बैठे राजकुमार ? ( इस प्रकार ) दोनों अभय-राजकुमारको निगंठनात-पुत्तको ओरके प्रश्न पछने पर श्रमण गौत कहा
उगिलसकेगा ननिगल सकेगा । जैसेकि आ राजकुमार ? श्रमण गोतमके
पुरुषके कंठमें लोहेको बंसी (श्रृंगाटक) साथ वाद (-शास्त्रार्थ) कर । इससे तेरा
लगा हा. वह न निगल सके न उगल सुयश (=कल्याणकीर्ति शब्द ) फैलेगा
सकेः एसे ही." 'अभय राजकुमारने इतने महाद्धिकइतने महानुभाव श्रमण गौतमके साथ
“अच्छा भन्ते " कह अभय राजवाद रोपा'
कुमार आसनसे उठ, निगंठ नायपुत्तको ___किसप्रकारसे भन्ते ! मैं इतने अभिवादनकर, प्रदिक्षणाकर, जहां महानुभाव श्रमण गौतमके साथ वाद। भगवन् थे वहां गया । जाकर भगवन् को रोपुंगा!
अभिवंदनकर, एक और बैठ गया. " आ तुं राजकुमार ? जहां श्रमण गौतम हैं, वहां जा । जाकर श्रमण
एक और बेठे हुये राजकुमार के गौतमको ऐसा कह--'क्या भन्ते ? तथा सूय (
सूर्य (समय ) देखकर हूआ ' आज गत एसा बचन बोल सकते है जो दुसरों- भगवानसे बाद रोपनेका समय नहीं है। को अ-प्रिय-अ-मनाप हो'।
' कल अपने घर पर भगवान्के साथ वाद यदि ऐसा पूछने पर श्रमण गौतम करना
. करुंगा ( और ) भगवानसे कहा. तुझे कहे-'राजकुमार बोल सकते है.
(अपूर्ण)
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