Book Title: Jain Samudrik Panch Granth
Author(s): Himmatram Mahashankar Jani
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab

View full book text
Previous | Next

Page 370
________________ 5 અચૂડામણિ સાર | મુષ્ટિ પ્રશ્નમાં જે જીવાક્ષર હોય તે મૂલ, મૂલાક્ષર હોય તે જીવ અને ધાત્વક્ષર હોય તો ધાતુ છે, એમ કહેવું. જ્યારે મુષ્ટિ પ્રીનમાં ઘણા વર્ષો પ્રથમ વર્ગના હેય, અથવા બિંદુ વિસર્ગ યુક્ત હોય કે પછી એકી સાથે ઘણું પ્રશ્ન હોય ત્યારે મુષ્ટિમાં કંઈ નથી એમ જાણવું. 28-29 विषमासरा ऊआरा वग्गाणं पढमतईय वण्णाई // दुप्पअ णराण एसाए आहारण दु न होइ // 30 // बीऊ दसमो सरओ वग्गाणं बीयवण्णया सयला // दिसंति जइअ पन्हे तामुणह चउप्पयं जीवं // 31 // जई वग्गाणय वण्णा पंचमया हुंति पन्ह पडियाई // तामुणह णिरअ वासिआ भूअ पिसाचाई सघाइं // 32 // मत्ता तपचवग्गेहि यशवग्गेहि हुंति सउणाओ // सिद्धा सरेहिं भणिया देवा उण कचटवग्गेहिं // 33 // चवइकवग्गो पन्हे लद्धोथलचारियं विहंगमयं / चिअ अइपहाणं तवग्गाउ णस्थिसंदेहो जइअ चवग्गो लद्धो तह पक्खी होई जलयरो Yणं // तंपि विग्गो सिह वचई पवग्गो स. अधर्म // 35 // पन्हे कवग्गवण्णा कालोरयसिंगिणो पयासंति // राजीव सप्पजाइं च वग्गा ताहं दंतत्थं गोणाससप्पजाई तवग्गवण्णा फुडं पयासंति // लहुअ विसाण जाई दिछी होसई तवग्ग वण्णेहिं // // 39 // विसम छदाहिं दुंदुहिकीड विसेसाई कि चुज्जं // जयविलद्धो पण्हे पवग्गं तु पन्ह चउरेण ससिजलवाणमुनिग्गह रुद्दसरावज्ज आण दुतीयवण्णाई॥ बुचंति धम्मधाउ अधमंतियसे सखवग्गाण // 39 // // 36 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376