Book Title: Jain Sahitya me Kshetra Ganit
Author(s): Mukutbiharilal Agarwal
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 10
________________ जैन साहित्य में क्षेत्र- गणित ४३१ 'त्रिलोकसार' में का मान ( 16 / 9 ) 2 भी मिलता है । ४१ उसमें लिखा है - "यदि किसी वृत्त की त्रिज्या हो और वह वृत्त व भुजा वाले वर्ग के बराबर हो तो होता है ।" अतः (16/9)2 क्षेत्रफल सम्बन्ध सूत्र 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य' में वृत्त के क्ष ेत्रफल के लिये निम्न सूत्र मिलता है-४२ वृत्त का क्षेत्रफल = 1/4 परिधि X व्यास 'तिलोयपण्णत्ति' में क्षेत्रफल सम्बन्धी निम्न सूत्र मिलते हैं- समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल ४३ मुख + भूमि 2 वृत्त का क्षेत्रफल ४४ = परिधि X वलय के आकार की आकृति का क्षेत्रफल ४५ = 10 Jain Education International d2 चित्र ४६ - X समान्तर रेखाओं के बीच की दूरी चित्र ५० व्यास 4 * ( बाहरी व्यास ) 2 4 ( भीतरी ब्यास) धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल ४६ = V X वाण X जीवा शंखाकार आकृति का क्षेत्रफल ४७ = -[(विस्तार)' – (पुल)+(ग)']×3⁄4 ני 2 4 AND 鱷 CO फ्र सामानि दल आमदन आआनंद अन ग्रन्थ श्री For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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