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HIप्रवर अभियाआनन्द अन्य
मा प्रवयव अभ श्रीआनन्द अन्य
। डा० मुकुटबिहारीलाल अग्रवाल एम० एस-सी०, पी-एच० डी० [सहायक प्रोफेसर-बलवंत विद्यापीठ, रूरल इन्स्टीट्यूट बिचपुरी (आगरा)
गणित एवं विज्ञान सम्बन्धी अनेक पुस्तकों के लेखक]
"ONA
जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
यह सत्य है कि भारतवर्ष में क्षेत्र-गणित का प्रादुर्भाव शुल्व-सूत्रों (ईसा से लगभग ३००० वर्ष पूर्व) से ही हुआ है। इन सूत्रों में यज्ञ-वेदियों के बनाने की विधियों के साथ-साथ वर्ग, समचतुर्भुज, समबाहु समलम्बचतुर्भुज, आयत, समकोण त्रिभुज, समद्विबाह समकोण त्रिभुज आदि आकृतियों के उल्लेख भी दर्शनीय हैं। वैदिक परम्परा में भी क्षेत्र-गणित की झलक 'वेदांग ज्योतिष' आदि ज्योतिष के ग्रन्थों में देखने को मिलती है। परन्तु जैन-ग्रन्थों में क्षेत्र-गणित के सम्बन्ध में जैन-दर्शन के वर्णन पर विशेष सामग्री प्राप्त होती है। इन ग्रन्थों में लोक का स्वरूप वणित पाया जाता है और उस निमित्त से सूर्य, चन्द्र व नक्षत्र तथा द्वीप, समुद्र आदि के विवरणों में क्षेत्र गणित की नाना आकृतियों का प्रचुरता से उपयोग किया गया है। 'सूर्यप्रज्ञप्ति,' 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' एवं 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' नामक उपांगों में तथा 'तिलोयपण्णति', 'षटखण्डागम की धवला टीका' एवं 'गोम्मटसार' व 'त्रिलोकसार' तथा उनकी टीकाओं में क्षेत्र-गणित का प्रचुर मात्रा में प्रयोग पाया जाता है और वह भारतीय प्राचीन गणित के विकास को समझने के लिये बड़ा महत्त्वपूर्ण है। 'षट्खण्डागम' में तो इस पर 'क्षेत्र-गणित' नाम से एक बड़ा भाग उपलब्ध है। इतना ही नहीं जैनाचार्यों के द्वारा प्रणीत गणित के स्वतंत्र ग्रन्थ अपना विशिष्ट महत्त्व बनाये हये हैं। इन ग्रन्थों में क्षेत्र-गणित पर व्यापक चिन्तन एवं मनन दर्शनीय है। उद्धरणतः महावीराचार्य (८५० ई०) का 'गणितसारसंग्रह' और उमास्वाति का 'क्षेत्रसमास' । यही कारण है कि क्षेत्र-गणित को अत्यधिकोपयोगी समझते हुये ही 'सूत्रकृतांग'' में इसको 'गणित-सरोज' की संज्ञा से अभिहित किया है। क्षेत्रों के प्रकार
'सूर्यप्रज्ञप्ति'२ (३०० ई०पू०) में आठ प्रकार के चतुर्भुजों का उल्लेख किया है। उनके नाम इस प्रकार हैं-समचतुरस्र, विषमचतुरस्र, समचतुष्कोण, विषमचतुष्कोण, समचक्रवाल, विषमचक्रवाल, चक्रार्धचक्रवाल और चक्राकार ।
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B0
समचतुरन चित्र १
विषम चतुरस्त्र
चित्र २
समचतुष्कोण चित्र ३
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विषम चतुष्कोण चित्र ४
त्रिस्र चित्र ६
विषम चक्रवाल चित्र ६
चक्रार्ध चक्रवाल
चक्राकार
चित्र ७
चित्रप
प्रो० वेबर ने उपरोक्त नामों की व्याख्या करके उनके नाम क्रमशः इस प्रकार लिखे हैं 3वर्ग, विषमकोण समचतुर्भुज, आयत, समान्तर चतुर्भुज, वृत्त, दीर्घवृत्त, अर्धदीर्घवृत्त और गोले का खण्ड |
'भगवती सूत्र' और 'अनुयोगद्वारसूत्र " आदि में पाँच प्रकार की आकृतियों का उल्लेख किया गया है
--
चित्र १०
जैन साहित्य में क्षेत्र - गणित
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समचक्रवाल चित्र ५
आचार्य प्रव श्री आनन्दन
आयत
४२३
चित्र ११
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अभिनंदन आआनन्दः ग्रन्थः
ग्रन्थ
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४२४
धर्म और दर्शन
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वृत्त चित्र १२
परिमण्डल चित्र १३
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त्रिभुज, चतुर्भुज, आयत, वृत्त और दीर्घवृत्त (Ellipse) । इन आकृतियों के लिये उन ग्रन्थों में क्रमशः ये नाम लिखते हैं :-त्रिस्र, चतुस्र, आयत, वृत्त तथा परिमण्डल ।
इन क्षेत्रों के प्रतर और धन-ये दो भेद बताकर 'अनुयोगद्वारसूत्र' में बड़ी सूक्ष्म चर्चा की है । घनत्रियस्र, धनचतुस्र, धनायत, घनवृत्त तथा घनपरिमण्डल का आशय क्रमशः त्रिभुजाकार सुचीस्तम्भ, घन, आयताकार ठोस, गोला और दीर्घवृत्ताकार बेलन से है।
इनकी आकृतियां इस प्रकार हैं
RE
COM
घनायत
घनत्रियस्र चित्र १४
घनचतुस्र चित्र १५
चित्र १६
घनपरिमण्डल
घनवृत्त चित्र १७
चित्र १८
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
४२५
___इसके अतिरिक्त वृत्ताकार, त्रिभुजाकार और चतुर्भुजाकार वलय का भी उल्लेख जैन ग्रन्थों में उपलब्ध है। इन आकृतियों को जैन साहित्य में क्रमशः वलयवृत्त, वलयत्रिस्र और वलय चतुस्र के नाम से पुकारा जाता है । ये आकृतियां निम्न आकार की हैं :
0
AMA)
OADA
जय
वलयवत्त चित्र १६
वलयत्रित्र चित्र २०
वलयचतुर्स चित्र २१
'गणितसारसंग्रह' नामक ग्रन्थ में त्रिभुज, चतुर्भुज तथा वक्ररेखीय आकृतियों का वर्णन मिलता है। इसमें त्रिभुज के तीन प्रकार की चर्चा की है जो भुजाओं के विचार से है। कोणों के विचार से त्रिभुजों का भेद नहीं किया है, यद्यपि समकोण त्रिभुज का गणित अवश्य मिलता है। इसके अनुसार त्रिभुज निम्नप्रकार के हैं-- .
१. समत्रिभुज (समत्रिबाहु त्रिभुज) २. द्विसमत्रिभुज (समद्विबाहु त्रिभुज) ३. विषम त्रिभुज (विषमबाहु त्रिभुज)
समत्रिभुज चित्र २२
द्विसमत्रिभुज चित्र २३
विषम त्रिभुज
चित्र २४
Uट
'गणितसारसंग्रह' में चतुर्भुज के पांच प्रकार बतलाये हैं जो इस प्रकार हैं
१. समचतुरस्र (वर्ग) २. द्विद्वि समचतुरस्र (आयत) ३. द्विसमचतुरस्र (समलम्ब चतुर्भुज जिसकी दो असमान्तर भुजायें समान लम्बाई की हों) । ४. त्रिसमचतुरस्र (समलम्ब चतुर्भुज जिसकी तीन भुजायें समान लम्बाई की हों) ५. विषमचतुरस्र (साधारण चतुर्भुज)
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aumaaJARJATAJANAutnawwwesmadutODMRUARJASAAAAAAAAADINAMAPANIPALAAJAAAAI
आचार्गप्रवरसाजनआचार्य
आत्रमा
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AnuraaNMAARJAAAAPaneRAMKARANaircularuantanARJAIAALARAMAdmdahanudra
आचार्य प्रवा आणि आचार्यप्रवर भिक श्राआनन्दमयन्याआड अभिनन्दन
४२६
धर्म और दर्शन
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समचतुरस्त्र चित्र २५
द्विद्वि समचतुरस्र
चित्र २६
द्विसमचतुरस्त्र चित्र २७
त्रिसमचतुरस्र
विषम चतुरस्र चित्र २८
चित्र २६ महावीराचार्य ने वक्ररेखीय आकृतियां निम्नलिखित आठ प्रकार की वर्णित की हैंसमवृत्त, अर्द्धवृत्त, आयतवृत्त (दीर्घवृत्त), कम्बुकावृत्त (शंखाकार क्षेत्र), निम्नावृत्त (अवतलवृत्तीय
क्षेत्र जैसे होमवेदी का अग्निकुंड), उत्तलवृत्तीय क्षेत्र जैसे कछुवे की पीठ), बहिश्चक्रवाल वृत्त और अन्तश्चक्रवाल वृत्त ।
समवृत्त चिच ३०
अर्धवृत्त चित्र ३१
आयतवृत्त चित्र ३२
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कम्बुकावृत (शख के आकार की आकृति)
निम्नावृत्त चित्र ३४
उन्नतावृत्त चित्र ३५
चित्र ३३
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वहिश्रकवालवृत्त चित्र ३६
इसके अतिरिक्त 'गणितसारसंग्रह' ग्रन्थ में 'हस्तदन्त क्षेत्र' का भी उल्लेख मिलता है । ६ (चित्र ३८ ) महावीराचार्य ने ऐसी कई अन्य आकृतियों का उल्लेख किया है जिनका विवेचन उनसे पहले किसी अन्य हिन्दू गणितज्ञ ने नहीं किया है । वे आकृतियां ये हैं ७ - यवाकारक्षेत्र ( जौ के आकार का क्षेत्र ), मुरजाकार क्षेत्र ( मृदंगाकार क्षेत्र), पणवाकार क्षेत्र, वज्राकार क्षेत्र, उभयनिषेध क्षेत्र, एक निषेध क्षेत्र तथा संस्पृशी तीन और चार वृत्तों द्वारा सीमित क्षेत्र । इन आकृतियों के आकार निम्न प्रकार हैं
--
Ge
प 2
हस्तदन्त क्षेत्र
चित्र ३८
पणवाकारक्षेत्र
चित्र ४१
एक निषेध आकृति चित्र ४४
जैन साहित्य में क्षेत्र - गणित
वज्राकार क्षेत्र चित्र ४२
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यवाकारक्षेत्र
चित्र ३६
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संस्पृशी तीन वृत्तवाला क्षेत्र चित्र ४५
अंतश्चक्रवाल वृत्त चित्र ३७
४२७
मुरजाकारक्षेत्र चित्र ४०
उभयनिषेध आकृति चित्र ४३
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संस्पृशी चार वृत्त वाला क्षेत्र चित्र ४६
ॐ
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आचार्य प्रव997 अन्
श्री आनन्द
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AANKala.......
आचार्यप्रवaal श्रीआनन्दग्रन्थ श्रीआनन्दकन्थ
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४२८
धर्म और दर्शन
बाह १
क्षेत्रों की नापने की इकाईयाँ
'अनुयोगद्वारसूत्र' में नापने की तीन इकाईयों का उल्लेख किया गया है-सूच्यांगृल, प्रतरांगुल और घनांगुल । ये तीनों क्रमशः लम्बाई, क्षेत्रफल और आयतन नापने की इकाईयाँ हैं । वृत्तगणित सम्बन्धी शब्द
'तत्वार्थाधिगमसूत्र भाष्य' में वृत्त गणित सम्बन्धी शब्दों का उल्लेख मिलता है । यथा-वृत्त परिक्षेप (परिधि), ज्या (जीवा), विषकम्भ (व्यास), इषु (वाण), धनुषकाष्ठ'० (चा तथा विषकम्मा १२ (अर्द्धव्यास) । वृत्तगणित के सूत्र
'तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य' में निम्नलिखित छः सूत्र उपलब्ध हैं। 1 वृत्त की परिधि =V10 व्यास 2. वृत्त का क्षेत्रफल = परिधि X व्यास 3. जीवा
=V4 वाण (व्यास-वाण) 4. वाण
= (व्यास-Vव्यास-जीवा') 5. धनुष =16 वाण+जीवा
___ (वाण+1 जीवा') 6. व्यास
वाण 'तिलोयपण्णति' में धनुष, जीवा, वाण, पार्श्वभुजा आदि के प्रमाण निकालने के लिये निम्नलिखित सूत्र मिलते हैं
परिधि१४ =V10xव्यास' धनुष'५ = 2 (व्यास+वाण):- (व्यास)
र व्यास व्यास जीवा 71 वाण' = -144]
2 धनुष, वाण और जीवा में निम्नलिखित सम्बन्ध हैं-१७ (धनुष) =6 (वाण) + (जीवा)'
నల
पाश्वं रेखा
जीवा.
बाण
।
धनुष चित्र ४७
चित्र ४८
जीवा
व्यास
जीवा = (व्यास)-(व्यास-वाण)
'व्यास
-वाण
2
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
शंकुछिन्नक की पार्श्व भुजा' == V (P-4)+he
+वाण
2
जबकि D= भूमि का व्यास, d=मुख का व्यास और h=ऊँचाई है। 'जम्बूद्वीपण्णत्ति' में वृत्त सम्बन्धी निम्नलिखित सूत्र मिलते हैं1. वृत्त की परिधि२० =v10 विष्कम्भ 2. वृत्त का विष्कम्भ२१
जीवा 2
.4 वाण 3. धनुष की पार्श्व भूजा२२ बड़ा चाप-छोटा चाप 4. जीवा२३
=V4 (विष्कम्भ-वाण)x वाण 5. धनुष२४
=v6 (वाण) + (जीवा) 6. वाण२५
=/ (धनुष) - (जीवा)
6 वाण के लिये एक सूत्र और दिया जो विष्कम्भ और जीवा ज्ञात होने पर प्रयोग किया जाता है। २६
7. वाण विष्कम्भ-V (विष्कम्भ) - (जीवा) 8. शंकुछिन्नक की पार्श्व भुजा की लम्बाई ___-V (D-4)+
जबकि D=भूमि का व्यास,d=मुख का व्यास और h=ऊँचाई है।
'गणितसारसंग्रह' में वृत्त सम्बन्धी गणित के अन्तर्गत धनुष, वाण तथा डोरी के सन्निकट एवं सूक्ष्म मान निकालने के सूत्र दिये हैं।२८ यहां पर 'डोरी' शब्द जीवा के लिये प्रयोग किया है।
1. धनुष की सन्निकट लम्बाई=15 (वाण) + (डोरी) 2. धनुष की सूक्ष्म लम्बाई =V6 (वाण) (डोरी)'
%ER
3. वाण की सन्निकट लम्बाई=/ (धनुष) - (डोरी)
4. वाण की सूक्ष्म लम्बाई =/ (धनुष) - (डोरी) 5. डोरी की सन्निकट लम्बाई=(धनुष)2-5(वाण) 6. डोरी की सूक्ष्म लम्बाई =V (धनुष):--6(वाण)
10वीं शताब्दी के आचार्य नेमिचन्द्र ने 'त्रिलोकसार' में समपार्श्व, शंकू, सूचीस्तम्भ तथा गोले का वर्णन किया है ।२६
आचाप्रति आचार्यप्रवर आज
HanumanJALAAMANASAKARuwannaCSADABALAJal
भीआनन्द
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आयार्यप्रवर अभिनंदन आआनन्द अन्य
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४३०
धर्म और दर्शन
'त्रिलोकसार' में वृत्त सम्बन्धी गणित सूत्र इस प्रकार मिलते हैं
परिधि का सन्निकट मान - 3 X व्यास
V10 व्यास
9/16 ( वर्ग की भुजा ), जबकि वृत्त, वर्ग के समक्षेत्रीय है । == 4 वाण ( व्यास - वाण )
परिधि का सूक्ष्म मान वृत्त की त्रिज्या ( जीवा ) 2
( धनुष ) :
व्यास
वाण
==
( धनुष ) 2 - 6 ( वाण )
6 ( वाण ) 2 + ( जीवा ) "
= 4 वाण
(( व्यास +
( जीवा ) 2 + 4 (वाण) *
4 वाण (जीवा ) * + (2 वाण ) "
4 वाण ( धनुष ) 2 2 वाण
-- वाण
वाण
2
( धनुष ) - 6
- ( जीवा ) 2
का मान - भिन्न-भिन्न समयों में लोगों ने य के भीग के विभिन्न मान दृष्टिगोचर होते हैं ।
= 1 / 2 [ व्यास - V (व्यास) ==V ( व्यास ) " + 1/2 ( धनुष
'सूर्य प्रज्ञप्ति' 39 में का मान V10 प्रयोग 'भगवती सूत्र’33 में भी का मान 10 काम में मान V10 और 3 16 हैं। सूत्र 82 व 109 में तो का मान 3 16 है ।
-0
-
-- व्यास
) 2 - विभिन्न मान माने हैं। जैन ग्रन्थों में
- ( जीवा ) " }
किया गया है । 'ज्योतिष्करण्डक' ३२ और लाया गया है । 'जीवाभिगमसूत्र' में का V 10 माना है परन्तु सूत्र 112 में
'तत्वार्थाधिगमसूत्र' ३४ में 7 का मान V10 माना गया है ।
'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' ३५ तथा 'उत्तराध्ययन सूत्र 3६ में का मान 3 से कुछ अधिक ( त्रिगुणं सविशेषम् ) माना है ।
'तिलोयपण्णत्ति' ३७ में भी का मान V 10 लिया गया है ।
धवलाकार वीरसेनाचार्य ने ग का मान 355 / 113 माना है जो सर्वदा विलक्षण एवं शुद्ध है । दिगम्बर ग्रन्थ 'लोकप्रकाश' 35 ( लगभग 1651 ई० ) में ग का मान मिलता है ।
19 6
महावीराचार्य ने 'गणितसारसंग्रह' 38 में 7 का मान केवल 3 मानकर स्थूल क्रिया की है परन्तु सूक्ष्म कार्य के लिये 10 माना है ।
'त्रिलोकसार' में भी आचार्य नेमिचन्द्र ४० ने स्थूल कार्य के लिये य का मान 3 तथा सुक्ष्म कार्य के लिये V 10 माना है ।
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जैन साहित्य में क्षेत्र- गणित
४३१
'त्रिलोकसार' में का मान ( 16 / 9 ) 2 भी मिलता है । ४१ उसमें लिखा है - "यदि किसी वृत्त की त्रिज्या हो और वह वृत्त व भुजा वाले वर्ग के बराबर हो तो
होता है ।"
अतः
(16/9)2
क्षेत्रफल सम्बन्ध सूत्र
'तत्त्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य' में वृत्त के क्ष ेत्रफल के लिये निम्न सूत्र मिलता है-४२ वृत्त का क्षेत्रफल = 1/4 परिधि X व्यास
'तिलोयपण्णत्ति' में क्षेत्रफल सम्बन्धी निम्न सूत्र मिलते हैं-
समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल ४३
मुख + भूमि
2
वृत्त का क्षेत्रफल ४४
= परिधि X
वलय के आकार की आकृति का क्षेत्रफल ४५ = 10
d2
चित्र ४६
- X समान्तर रेखाओं के बीच की दूरी
चित्र ५०
व्यास 4
* ( बाहरी व्यास ) 2
4
( भीतरी ब्यास)
धनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल ४६ = V X वाण X जीवा
शंखाकार आकृति का क्षेत्रफल ४७ = -[(विस्तार)' – (पुल)+(ग)']×3⁄4
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आचार्यप्रसाधनाचार्यप्रसाद श्रीआनन्दाअन्ध92श्रीआनन्दमन्थ । ४३२ धर्म और दर्शन
'जम्बूद्वीवपण्णति' में वलयाकार आकृति क्षेत्रफल के लिये विभिन्न सूत्र दिये हैं जो इस प्रकार हैं-४८ वलयाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल = [2d.- (d.-d.)]]( )x10] जबकि dh=बाहरी व्यास तथा
d, भीतरी व्यास है।
'गणितसार संग्रह' में क्षेत्रफल के सम्बन्ध में आचार्य ने दो प्रकार के क्षेत्रफल का वर्णन किया है-सन्निकट और सूक्ष्म । यथा-सम्भव प्रत्येक आकृति के दोनों ही प्रकार के क्षेत्रफल-निकालने के सूत्र दिये हैं जो निम्नलिखित हैं
त्रिभुज का सन्निकट क्षेत्रफल = 1/2 X आधार X बाजू की दोनों भुजाओं का योगफल
त्रिभूज का सूक्ष्म क्षेत्रफल ० =Vम(म ---अ) (म-ब) म-स) जबकि म त्रिभुज की अर्धपरिमिति तथा अ, ब, स त्रिभुज की तीनों भुजायें हैं । दूसरा नियमत्रिभुज का सूक्ष्म क्षेत्रफल ५१ = आधार X लम्ब
2 चतुर्भुज का सन्निकट क्षेत्रफल५२_अ-+सब+द
2 २ चतुर्भुज का सूक्ष्म क्षेत्रफल ५३ = V(म-अ) (म - ब) (म-स) (म --द) जबकि अ, ब, स और द चतुर्भुज की चारों भुजाएँ और म अर्द्ध परिमिति है । दूसरे नियम के अनुसार चतुर्भुज का सूक्ष्म क्षेत्रफल५४
___ ब+द
या
2 Xल
IRAM
जबकि ब आधार, द उसके सामने की भुजा और ल, द से ब पर डाला गया लम्ब है। नेमिक्षेत्र (कंकणसदृश) आकृति५५ का सन्निकट क्षेत्रफल ५६ = (प, +.) X ल नेमिक्षेत्र आकृति का सूक्ष्म क्षेत्रफल५७=१५ प२४ ल XV 10
6
IP
ज
जबकि प, बाहरी परिधि
पर-भीतरी परिधि
ल =कंकण की चौड़ाई है। हाथी के दांत का सूक्ष्म क्षेत्रफल५८
_प, +१२ x बX/10
12 (इसके लिये चित्र ३८ देखें)
चित्र ५१ वृत्त का सन्निकट क्षेत्रफल-इसमें 7 का सन्निकट मान 3 लिया गया है। अतः यदि व्यास a हो तो
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
४३३
वृत्ति को सन्निकट परिधि
=3a
./a और वृत्त का सन्निकट क्षेत्रफल=3
-1
=3re
S
जब कि a/2 =r==वृत्त की त्रिज्या
(AN
अर्बुवृत्त की सन्निकट परिधि= और अर्द्ध'वृत्त का क्षेत्रफल =
GST
वृत्त का सूक्ष्म क्षेत्रफल -इसमें 7 का मान V10 लिया गया है। परिधि का सूक्ष्म मान=v10X व्यास
वृत्त का क्षेत्रफल–परिधि व्यास
_1/परिधि व्यास और अर्द्धवृत्त का क्षेत्रफल=
24 आयतवृत्त (Ellipse) का क्षेत्रफल-यदि आयतवत की बड़ी और छोटी अक्षि (Semi axes) क्रमशः a और b हों तो आयतवृत्त का सन्निकट क्षेत्रफल १=2X (2a+b)xb/2
=2ab+b' आयतवृत्त की सूक्ष्म परिधि६२ =/6b+4a2 और आयतवृत्त का सूक्ष्म क्षेत्रफल =1 bxv6b+4
शंखाकार आकृति का क्षेत्रफल-आचार्य महावीर द्वारा उल्लेखित शंखाकार आकृति, तिलोयपण्णति में वणित शंखाकार आकृति से भिन्न है । यदि शंखाकार आकृति का व्यास a और मुख की माप m हो तो
परिमिति की सन्निकट माप६४ =31
3
/
m
और सन्निकट क्षेत्रफल ६५
= [(a-m)]x+ ()
शंखाकार आकृति की सूक्ष्म परिमिति
|
10
तथा सूक्ष्म क्षेत्रफल १०
=[{ (e-m) } } +(M)]/10
निम्नावृत्त और उन्नतावृत्त के तलों का क्षेत्र८-यदि p छेदीयवृत्त (किनार) की परिधि और b व्यास हो तो
क्षेत्रफल क्षेत्रफल = Pxb
MAJanuALIuadrinaARAJJARASADARAJaanweadmaavarARSANILIAAIN
SARASTRARANAGORAINMainiromanias HIm
HIROINIयात्र
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4AL
604
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सायाम
श्राआनन्दमयन्थश्राआनन्दाअन्ध५१
४३४
धर्म और दर्शन
बहिश्चक्रवालवृत्त तथा अन्तचक्रवालवृत्त का क्षेत्रफल-यदि भीतरी व्यास b और कंकण की लम्बाई हो तो बाहरी कंकण का सन्निकट क्षेत्रफल ६-3(b+ror
=3br+3rd भीतरी कंकण का सन्निकट क्षेत्रफल.
=3(b-rr
=3brअन्तश्चक्रवाल वृत्त तथा वहिश्चक्रवाल वृत्त पूर्व वणित नेमिक्षेत्र से मिलते हैं । अतः वह नियम जो नेमिक्षेत्र के क्षेत्रफल को ज्ञात करने के लिये हैं, उपरोक्त नियमों से बिलकुल मिलते हैं क्योंकि-नेमिक्षेत्र के क्षेत्रफल के नियम से--
चित्र ५२
चित्र ५३
3b+3(b+2r). बहिश्चक्रवाल वृत्त का क्षेत्रफल
2 ___3br+3br+6r
2 6br+6r
2
= 3br+3r यहाँ पर 7 का मान 3 लिया गया है। बाहरी कंकण का सूक्ष्म क्षेत्रफल = (b+r)xrxv10 और भीतरी कंकड़ का सूक्ष्म क्षेत्रफल २= (b-r)xrxv10
वृत्त की परिधि, व्यास और क्षेत्रफल निकालने के लिये नियम, जब क्षेत्रफल, परिधि और व्यास का योग दिया हो--७३
यदि p वत्त की परिघि और 1 =3 लिया गया हो तो
व्यास- और क्षेत्रफल --- 3 P यदि परिधि, व्यास और क्षेत्रफल का योग=m हो तो
DER
य
___P+3+3g=m
... P = 112m+64-8 यव, मुरज, पणव और वज्र के आकार का सन्निकट क्षेत्रफल
"अन्त और मध्य माप के योग की अद्धराशि को लम्बाई द्वारा गुणित करने पर क्षेत्रफल प्राप्त होता है।"७४
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
उपरोक्त नियम इस मान्यता पर आधारित हैं कि प्रत्येक सीमावर्ती वक्र रेखा उन सरल रेखाओं के योग के बराबर है जो वकों के सिरों (छोरों अथवा अन्तों) को मध्य बिन्द्र के मिलाने से प्राप्त होती है। मृदंगाकार, पणवाकार और बज्राकार आकृतियों के सूक्ष्म क्षेत्रफल
"महत्तम लम्बाई को मुख की चौड़ाई द्वारा गुणित करने पर जो प्राप्त हो ऐसे परिणामी क्षेत्रफल में सम्बन्धित धनुषाकृतियों के क्षेत्रफलों के मान को जोड़ने पर योग मृदंग के आकार की आकृति के क्षेत्रफल का माप होता है।" ७५
“पणव और वज्र की आकृति के क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिये महत्तम लम्बाई और मुख की चौड़ाई के गुणनफल से प्राप्त क्षेत्रफल में धनुषाकृति के क्षेत्रफल को घटा देते हैं।" उभयनिषेध एवं एकनिषेध क्षेत्र का क्षेत्रफल
किसी चतुर्भुज को उसके दोनों विकर्णों द्वारा चार त्रिभूजों में बाँट देने पर और फिर दो सम्मुख भुजाओं को हटाने पर प्राप्त आकृति उभयनिषेध क्षेत्र कहलाती है। यदि केवल एक त्रिभुज हटाया जाय तो प्राप्त आकृति एक निषेधक्षेत्र कहलाती है।
यदि उभयनिषेध की लम्बाई । और चौड़ाई b है तो क्षेत्रफल=lb-11b
एक निषेध आकृति का क्षेत्रफल=b-11b. बहुविधवज्र आकार का सन्निकट क्षेत्रफल७७
यदि भुजाओं की मापों के योग की आधीराशि ऽ हो और भुजाओं की संख्या n हो तो क्षेत्रफल = x", होता है।
यह सूत्र त्रिभुज, चतुर्भुज, षट्भुज और वृत्त को अनन्त भुजाओं की आकृति मानकर उनके सम्बन्ध में व्यावहारिक क्षेत्रफल का मान देता है। नियमित षट्भुज के कर्ण, लम्ब और क्षेत्रफल के सूक्ष्म मान ८
कर्ण --- 2a
लम्ब= V3a
और क्षेत्रफल= 13 a जहाँ a षट्भुज की एक भुजा है। संस्पर्शीवृत्तों द्वारा समिति क्षेत्र का क्षेत्रफल
__ यदि अर्द्ध परिमिति S और भुजाओं की संख्या n हो, तो वृत्तों द्वारा सीमित क्षेत्र का क्षेत्रफल= Exn-1 ) होता है। इसका स्पष्टीकरण निम्न उदाहरणों द्वारा है।
_
n
st
.
उदाहरणार्थ प्रश्न 1-चार समानवृत्त जिनमें से प्रत्येक का व्यास 9 है एक दूसरे को स्पर्श करते हैं। बतलाओ उनसे धिरे हुए क्षेत्र का क्षेत्रफल क्या है।
हल-इस प्रश्न में (चित्र ४६ के अनुसार) चारों वृत्तों का व्यास स्पर्श बिन्दुओं में से गुजारने पर चतुर्भुज बन जाता है । इस चतुर्भुज की परिमिति 4x9=36 हुई और भुजाओं की संख्या 4 है।
anamaANMARKAJALALAAINAJARAJAJANMARATHI
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आचार्गप्रशासनाचार्यप्रवर भिक श्रीआनन्दा श्राआनन्दा अन्य
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४३६
धर्म और दर्शन
अतः अभीष्ट सीमित क्षेत्र का क्षेत्रफल
-[3()-4-1]
=20+
प्रश्न 2-तीन वृत्त, जिनके व्यास की माप 6, 5 और 4 है एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं। बतलाओ इन वृत्तों द्वारा घिरे हुये क्षेत्र का क्षेत्रफल क्या है।८१
हल-इस प्रश्न में (चित्र ४५ के अनुसार) तीनों वृत्तों के व्यास स्पर्श बिन्दुओं में से गुजारने पर AABC बनता है । इस A की परिमिति=6+5+4=15 हुई और भुजाओं की संख्या 3 है।
अतः वृत्तों द्वारा घिरे हुये क्षेत्र का क्षेत्रफल = [1 )x351]
==xxxx
=
3
धनुषाकार आकृति का सन्निकट क्षेत्रफल
धनुषाकार क्षेत्र, वृत्त का अवधा जैसा होता है। यहाँ धनुष, वृत्त का चाप, धनुष की डोरी और वाण, चाप और डोरी के बीच की महत्तम लम्ब दूरी होती है।
यदि वाण=1 और डोरी K हो तो, धनुषाकार आकृति का क्षेत्रफल२=(K+1)x1/2
और धनुषाकार आकृति का सूक्ष्म क्षेत्रफल ८3=KxIxV10 यवाकार आकृति का सूक्ष्म क्षेत्रफल ४
यवाकार आकृति का सूक्ष्म क्षेत्रफल=Kx.x10
जबकि 1 दोनों ओर के पूर्ण वाण की लम्बाई है। धतुभुज के परिगत और अन्तर्गत वृत्त के सन्निकट क्षेत्रफल ६५
परिगत वृत्त का क्षेत्रफल=-3/2x चतुर्भुज का क्षेत्रफल तथा अर्न्तगत वृत्त का क्षेत्रफल=3/4X चतुर्भुज का क्षेत्रफल
'गोम्मटसार' तथा 'त्रिलोकसार' में क्षेत्रफल से सम्बन्धित निम्नलिखित सूत्र उपलब्ध होते हैं।
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जैन साहित्य में क्षेत्र-गणित
४३७
समद्विबाह समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल८६
=1/2(मुख+भूमि) ऊँचाई वृत्त का क्षेत्रफल
=1/4Xपरिधि- व्यास वृत्त-खण्ड का सन्निकट क्षेत्रफल -10 जीवा X वाण
4 वृत्त-खण्ड का सूक्ष्म क्षेत्रफल -1/2 (जीवा+वाण)xवाण त्रिभुज के अवधाओं तथा लम्ब निकालने का नियम
inita
CENTE
Ch
स,- (स+अब)
स,= ( स-अ-ब) तथा ल=/अ-स. अथवा
आधार के
Vब-स
चित्र ५४ यहाँ अ, ब, और स त्रिभुज की भुजाओं का निरूपण करते हैं। स, और स ऐसे दो खण्ड हैं जिनका योग स है तथा ल शीर्ष से आधार पर गिराया गया लम्ब है। चतुर्भुज के विकों का मान निकालने के लिये नियम यदि अ, ब, स और द चतुर्भुज की भुजाओं की माप हों तो चतुर्भुज का विकर्ण (अ. स ब . द) (अ. ब.+स.द)
अ. द+स. द अथवा
(अ. स+ब. द) (अ. द.+ब.स)
अ. ब+स. द आयतन सम्बन्धी सूत्र
"तिलोयपण्णत्ति' में आयतन सम्बन्धी निम्नलिखित सूत्र मिलते हैं :
लम्ब पम्पार्व का आयतन २=आधार का क्षेत्रफल x सम्पावं की ऊँचाई घनाकार सान्द्र का आयतन 3="
जबकि / घनाकार सान्द्र की एक कोर की लम्बाई है। आयतज का आयतन ४ =लम्बाई-चौड़ाईxऊँचाई बेलन का आयतन: ५=/10 (त्रिज्या)Px ऊँचाई
समान्त रानीक (Parallelepiped) का आयतन ६ =लम्बाई चौड़ाई x उत्सेध
शंखाकार सान्द्र का आयतन ७ =आधार का। क्षेत्रफल x उत्सेध
-----ऊंचाई
मोटाई
+
-भूमि
चित्र ५५
ani.su..
.RRAIMARJunainamaADAPAddIABAJANARAANAANAANAanadar.ABAJANRAIAPAIGONDORE
SNNIL ६
आचार्यप्रकट भआचार्यप्रवरअ श्राआनन्दाग्रन्थ श्राआनन्द
wearinaruwaonawarenemaoniw
araneway
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४३८
धर्म और दर्शन
'जम्बूद्वीपण्णति' में वेत्रासन सदृश क्षेत्र के आयतन का सूत्र मिलता है जो इस प्रकार हैवेत्रासन सदृश क्षेत्रका आयतन =JOTan.xउचाईर मोटाई
2 आचार्य महावीर ने आयतन सम्बन्धी विवेचन 'खात व्यवहार' के अन्तर्गत किया है इसमें इन्होंने तीन प्रकार ने आयतन का उल्लेख किया है- कर्मान्तिक घनफल, औन्ड्र घनफल, तथा सूक्ष्म घनफल । बेलन का आयतन, खोदी हुई खाई का घनफल, गोले का घनफल, त्रिभुजाकार आधार वाले स्तुप का घनफल विभिन्न प्रकार के ईट सम्बन्धी प्रश्न एवं लकड़ी सम्बन्धी गणित आदि का भली प्रकार विवेचन किया है। गढ़े का सन्निकट आयतन ६
गढ़े का सन्निकट आयतन-गढ़े के आधार का सन्निकट क्षेत्रफलगहराई।
खातों का सूक्ष्म आयतन निकालने के सम्बन्ध में महावीराचार्य ने तीन प्रकार की मापों का वर्णन किया है-कर्मान्तिक, औन्ड्र और सूक्ष्म घनफल । कर्मान्तिक और औन्ड्र माप समाइयों के सूक्ष्म मानों को देते हैं । इन दोनों सूक्ष्म मानों की सहायता से सूक्ष्म धनफल की गणना की जाती है ।
सूक्ष्म घनफल=y+K =K+ ta
जहाँ a औन्द्र घनफल और K कर्मान्तिक घनफल है।
यदि काटे गये वर्ग आधार वाले स्तुप के ऊपरी तथा निम्न तल की भुजाओं की माप क्रमश: a और b और ऊँचाई । हो तो----- कर्मान्तिक घनफल
ta+be
Xh
a+be. और औन्ड्र घनफल -- h गोले का आयतन
गोले का सन्निकट आयतन००
.
9113
9/d39 और गोले का सुक्ष्म आयतन'०१=.
<-जबd गोले का व्यास है यदि स्तूप के आधार की एक भूजा की माप a हो तो,
2
स्तूप का सन्निकट आयतन =
9
= 18xas av2
तथा स्तूप का सूक्ष्म आयतन=-=X
V10
18
12
गोम्मटसार में आयतन सम्बन्धी सूत्र
सम्पार्श्व का आयतन ०२=आधारxऊँचाई
शंकू अथवा सची स्तम्भ का आयतन 3-1xआधार का क्षेत्रफल Xऊँचाई गोले का आयतन ०४--.X(r)"
शंक्वाकार ढेर (सरसों आदि) का आयतन'०५ ---(परिधि)xऊंचाई यह नियम इस प्रकार बनता है
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जैन साहित्य में क्षेत्रगणित
४३६
आधार का क्षेत्रफल = (परिधि) (7 का मान 3 रखने पर) अतः आयतनःX आधार का क्षेत्रफल X ऊँचाई
=1XI(परिधि)'xऊँचाई (परिधि
(6) Xऊँचाई
निष्कर्ष-'क्षेत्रगणित' का भारतीय गणित में ही नहीं अपितु विश्व गणित में अपना विशिष्ट महत्व है। क्षेत्र गणित के अन्तर्गत त्रिभुज, वर्ग, चतुर्भुज, दीर्घवृत्त, परवलय आदि गणित अध्ययन के ऐसे तत्व हैं जिनके द्वारा गणित का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट होना सम्भव है। क्षेत्र गणित के इन तत्वों के उद्गम और विकास में जैनाचार्यों का वह महत्तम योगदान है जिसको कभी विस्मरण नहीं किया जा सकता । कतिपय क्षेत्रगणित के तत्वों के उद्गम एवं विकास पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि वृत्त क्षेत्र के सम्बन्ध में प्राचीन गणित पर जितना भी कार्य हआ है वह जैनाचार्यों की ही देन है। आजकल की खोज में वृत्त की जिन गूढ़ गुत्थियों को कठिनाई से गणितज्ञ समझा पा रहे हैं, उन्हीं को जैनाचार्यों ने अपनी महती प्रज्ञामयी कुशलता से सरलता पूर्वक समझाया है। दीर्घवृत्त का अध्ययन करने वाले महावीराचार्य जी, जो हिन्दू गणित में तो अपना कोई सानी नहीं रखते, साथ ही साथ विश्व गणित में भी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। महावीराचार्य ने वृत्तीय चतुर्भुजों के उन समस्त सूत्रों का उल्लेख किया है जो ब्रह्मगुप्त ने दिये हैं परन्तु आपकी शैली अत्यधिक सुस्पष्ट है। यवाकार, मुरजाकार, पणवाकार, वज्राकार आदि विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन और उनके क्षेत्रफलों का प्रतिपादन जैनाचार्यों के विशेष योगदान से ही सम्भव हो सका है। क्षेत्रगणित के अन्तर्गत ग की महिमा अपना चौमुखी महत्व रखती है। 7 का मान 355/113, जो नवीं शताब्दी के गणितज्ञ धवलाकार वीरसैनाचार्य की विशेष देन है, वह आज भी आधुनिकतम खोज द्वारा प्राप्त ग के मान से पूर्णतः मेल खाती है।
अन्ततः कहा जा सकता है कि क्षेत्रगणित के व्यापकत्व में जैनाचार्यों का चिरस्मरणीय योगदान है। इन्हीं जैनाचार्यों ने क्षेत्र गणित जैसे नीरस विषय को सरलता, सुबोधता तथा स्वाभाविकता की त्रिगुणात्मकता की चिरगरिमा से मण्डित किया है।
संदर्भ १. सूत्रकृतांग भाग २, अध्याय १, सूत्र १५४ १३. वही, भाग ३, अध्याय २, पृ० २५८ २. सूर्यप्रज्ञप्ति, सूत्र ११, २५, १०० १४. तिलोयपण्णत्ति ४, ५५-५६ ३. Indische studien, Vol X, p. 274 १५. वही, ४, ६ ४. भगवतीसूत्र (१५, ३ सूत्र ७२४-७२६) १६. वही, ४, १८२ ५. 'अनुयोगद्वार सूत्र' सूत्र, १२३-१४४ १७. तिलोयपण्णति का गणित, पृ० ५४ ६. गणितसारसंग्रह, अध्याय ७, गाथा ११ १८. तिलोयपण्णत्ति ४, १८० ७. वही, अध्याय ७, गाथा ३२, ३७, एवं ४२ १६. वही, ४, १७६३ ८. 'अनुयोगद्वारसूत्र', सूत्र १००, १३२, १३३ २०. जम्बूद्वीवपण्णत्ति, १, २३; ४,३३-३४ ९. 'तत्वार्थाधिगमसूत्र भाष्य' भाग ३, २१. वही, २, २६, ६ अध्याय २, पृ० २५८
२२. वही, २, ३० १०. वही, भाग ३, अध्याय २, पृ० २५८ २३. वही, २, २३, ६, ६ ११. वही, भाग ३, अध्याय २, पृ० २५८ २४. वही, २, २४-२८, ६, १० १२. वही, भाग ४, अध्याय १४, पृ० २८८ २५. वही, २, २६
भाया प्रकार आभापार्यप्रवर अभी श्रीआनन्द
श्रीआनन्दप्रसन्न
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________________ maaranaraaNamancoursraveenacancernsamaan आचार्यप्रवभिआचार्यप्रवर अभि श्रीआनन्द अन्यश्रीआनन्द YYAmoviram 440 धर्म और दर्शन SHREERA 26 वही, 2, 25, 6, 11 57-58. वही, अध्याय 7, गाथा 80 1/2 27. वही, 4,36 56. वही, अध्याय 7, गाथा 16 28. गणितसार संग्रह अध्याय 7, गाथा 43, 60. वही, अध्याय 7, गाथा 60 . 45, 733 और 741/2 61. वही, अध्याय 7, गाथा 21 26. त्रिलोकसार, गाथा 17, 19, 22, और 23 62-63. वही अध्याय 7, गाथा 63 30. वही, गाथा, 311, 18, 760, 761, 64. वही अध्याय 7, गाथा 30 763-766 65. वही अध्याय 7, गाथा 23 31. सूर्यप्रज्ञाति सूत्र 20 66-67. वही, अध्याय 7, गाथा 65 1/2 32. ज्योतिष करण्डक, गाथा 105 68. वही, अध्याय 7, गाथा 25 33. भगवती सूत्र-सूत्र 61 69-70. वही, अध्याय 7, गाथा 20 34. तत्वार्थाधिगम सूत्र 3-11 71-72. वही, अध्याय 7 गाथा 67 1/2 35. जम्बूद्वीपप्रज्ञाति, सूत्र 16 73. वही, अध्याय 7, गाथा 30 36. उत्तराध्ययन सूत्र-सूत्र (35-56) 74. वही, अध्याय 7 गाथा 32 37. तिलोयपण्णति 4, 55-56 75-76. वही, अध्याय 7, गाथा 76 1/2 38. लोक प्रकाश (आई० वी० 72) 77. वही, अध्याय 7, गाथा 36 36. गणितसारसंग्रह अध्याय 7 गाथा 16-60 78. वही, अध्याय 7 गाथा 86 1/2 40. त्रिलोकसार, गाथा, 211 76. वही, अध्याय 8, गाथा 36 41. वही, गाथा 18 80-81. वही अध्याय 7, गाथा 42 42. तत्वार्थाधिगमसूत्र भाष्य, भाग 3, अध्याय 2, 82. वही, अध्याय 7, गाथा 43 पृ० 258 83-84. वही, अध्याय 7, गाथा 70 1/2 43. तिलोयपण्णत्ति 1, 165 85. वही, अध्याय 7, गाथा 47 44. वही,४, 6 और 4, 2761 86 त्रिलोकसार 114 45. वही, 4, 2763 87. वही, गाथा 311 46. वही, 4,2374 88-86. वही, गाथा 762 47. वही 5, 316-20 10. गणितसारसंग्रह, अध्याय 7, गाथा 46 48. जम्बूद्वीवपण्णति ,11 61 11. वही, अध्याय 7, गाथा 54 46. गणितसारसंग्रह अध्याय 7 गाथा 50 12. तिलोयपण्णत्ति, 1, 165 50. वही अध्याय 7 गाथा 50 63-64. वही, 1, 203-14 51. वही, अध्याय 7 गाथा 50 65. वही, 1116 52. वही, अध्याय 7 गाथा 7 66. वही, 1, 268 53. वही, अध्याय 7 गाथा 50 67. वही, 5, 316-20 54. गणितसार संग्रह, अध्याय 7, गाथा 50 68. जम्बूद्वीवपण्णात्ति, 11, 108 परन्तु यह नियम विषभचतुर्भुज के लिये 66. गणितसारसंग्रह, अध्याय 8 गाथा 4 लागू नहीं है। 100-101. वही, अध्याय 8, गाथा 28 1/2 55 ऐसे दो वृत्तों की जिनके केन्द्र एक ही हों, 102. गोम्मटसार, गाथा 17 परिधियों के बीच का क्षेत्रफल, नेमिक्षेत्र 103-104. वही, गाथा 16 कहलाता है। 56. गणितसार संग्रह, अध्याय 7 गाथा 7 105. वही, गाथा, 22, 23