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आयार्यप्रवर अभिनंदन आआनन्द अन्य
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धर्म और दर्शन
'त्रिलोकसार' में वृत्त सम्बन्धी गणित सूत्र इस प्रकार मिलते हैं
परिधि का सन्निकट मान - 3 X व्यास
V10 व्यास
9/16 ( वर्ग की भुजा ), जबकि वृत्त, वर्ग के समक्षेत्रीय है । == 4 वाण ( व्यास - वाण )
परिधि का सूक्ष्म मान वृत्त की त्रिज्या ( जीवा ) 2
( धनुष ) :
व्यास
वाण
==
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( धनुष ) 2 - 6 ( वाण )
6 ( वाण ) 2 + ( जीवा ) "
= 4 वाण
(( व्यास +
( जीवा ) 2 + 4 (वाण) *
4 वाण (जीवा ) * + (2 वाण ) "
4 वाण ( धनुष ) 2 2 वाण
-- वाण
वाण
2
( धनुष ) - 6
- ( जीवा ) 2
का मान - भिन्न-भिन्न समयों में लोगों ने य के भीग के विभिन्न मान दृष्टिगोचर होते हैं ।
= 1 / 2 [ व्यास - V (व्यास) ==V ( व्यास ) " + 1/2 ( धनुष
'सूर्य प्रज्ञप्ति' 39 में का मान V10 प्रयोग 'भगवती सूत्र’33 में भी का मान 10 काम में मान V10 और 3 16 हैं। सूत्र 82 व 109 में तो का मान 3 16 है ।
-0
-
-- व्यास
) 2 - विभिन्न मान माने हैं। जैन ग्रन्थों में
- ( जीवा ) " }
किया गया है । 'ज्योतिष्करण्डक' ३२ और लाया गया है । 'जीवाभिगमसूत्र' में का V 10 माना है परन्तु सूत्र 112 में
'तत्वार्थाधिगमसूत्र' ३४ में 7 का मान V10 माना गया है ।
'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' ३५ तथा 'उत्तराध्ययन सूत्र 3६ में का मान 3 से कुछ अधिक ( त्रिगुणं सविशेषम् ) माना है ।
'तिलोयपण्णत्ति' ३७ में भी का मान V 10 लिया गया है ।
धवलाकार वीरसेनाचार्य ने ग का मान 355 / 113 माना है जो सर्वदा विलक्षण एवं शुद्ध है । दिगम्बर ग्रन्थ 'लोकप्रकाश' 35 ( लगभग 1651 ई० ) में ग का मान मिलता है ।
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महावीराचार्य ने 'गणितसारसंग्रह' 38 में 7 का मान केवल 3 मानकर स्थूल क्रिया की है परन्तु सूक्ष्म कार्य के लिये 10 माना है ।
'त्रिलोकसार' में भी आचार्य नेमिचन्द्र ४० ने स्थूल कार्य के लिये य का मान 3 तथा सुक्ष्म कार्य के लिये V 10 माना है ।
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