Book Title: Jain Sahitya me Kshetra Ganit
Author(s): Mukutbiharilal Agarwal
Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf

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Page 13
________________ सायाम श्राआनन्दमयन्थश्राआनन्दाअन्ध५१ ४३४ धर्म और दर्शन बहिश्चक्रवालवृत्त तथा अन्तचक्रवालवृत्त का क्षेत्रफल-यदि भीतरी व्यास b और कंकण की लम्बाई हो तो बाहरी कंकण का सन्निकट क्षेत्रफल ६-3(b+ror =3br+3rd भीतरी कंकण का सन्निकट क्षेत्रफल. =3(b-rr =3brअन्तश्चक्रवाल वृत्त तथा वहिश्चक्रवाल वृत्त पूर्व वणित नेमिक्षेत्र से मिलते हैं । अतः वह नियम जो नेमिक्षेत्र के क्षेत्रफल को ज्ञात करने के लिये हैं, उपरोक्त नियमों से बिलकुल मिलते हैं क्योंकि-नेमिक्षेत्र के क्षेत्रफल के नियम से-- चित्र ५२ चित्र ५३ 3b+3(b+2r). बहिश्चक्रवाल वृत्त का क्षेत्रफल 2 ___3br+3br+6r 2 6br+6r 2 = 3br+3r यहाँ पर 7 का मान 3 लिया गया है। बाहरी कंकण का सूक्ष्म क्षेत्रफल = (b+r)xrxv10 और भीतरी कंकड़ का सूक्ष्म क्षेत्रफल २= (b-r)xrxv10 वृत्त की परिधि, व्यास और क्षेत्रफल निकालने के लिये नियम, जब क्षेत्रफल, परिधि और व्यास का योग दिया हो--७३ यदि p वत्त की परिघि और 1 =3 लिया गया हो तो व्यास- और क्षेत्रफल --- 3 P यदि परिधि, व्यास और क्षेत्रफल का योग=m हो तो DER य ___P+3+3g=m ... P = 112m+64-8 यव, मुरज, पणव और वज्र के आकार का सन्निकट क्षेत्रफल "अन्त और मध्य माप के योग की अद्धराशि को लम्बाई द्वारा गुणित करने पर क्षेत्रफल प्राप्त होता है।"७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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