Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 2
________________ एक दृष्टि में प्रस्तुत ग्रन्थ जैन साहित्यका इतिहास एक पीठिका और दो भागोंमे ममाप्त है। (i) पीठिकामें, जो ७७६ पृष्ठोंमें है, लखकने जनधर्मके प्राक् और वर्तमान इतिहासको 'जैनधर्मके इतिहासको खोज', 'प्राचीन स्थितिका अन्वेषण', 'ऐतिहासिक युगमें' और 'श्रुतावतार' शीर्षकों द्वारा अनुमन्धानपूर्ण एवं तटस्थ लेखनीसे प्रस्तुत किया है। प्रत्येक विषयको गम्भीरता. विशदता और विस्तारसे शोध की है। (ii) प्रथम भागमें, प्रथम अध्यायके प्रथम परिच्छेदम मूलागम-साहित्यके अन्तर्गत कमाय-पाहुड, उसकी विषयवस्तृ. उसके कर्ता आदिका विशद विवंचन है । द्वितीय परिच्छेदमें छक्खंडागम ( पट्खण्डागम ), उसकी विषयवस्तु और कर्ता आदिका, नृतीय परिच्छेदमें महाबंधका विस्तृत परिचय है। द्वितीय अध्यायमे चणि-साहित्यका अहापोह है। तृतीय अध्याय के प्रथम परिच्छेदमें धवला टीका. उमकी विषय-वस्तृ और कां आदिका प्रतिपादन है। द्वितीय परिच्छेदमें जयश्वला-टीका, उमकी विषयवस्तु और कर्ता आदिका विस्तृत कथन किया गया है । चतुर्थ अध्यायमें अन्य प्राचीन कम-माहित्यका निरूपण है । पंचम अध्यायमें उत्तरकालीन कम-माहित्य विशदतासे विवेचित है । इस प्रकार इस ग्वण्डम मूलागम और और उनके टीका-साहित्यपर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है । यह भाग ५१० पृष्ठोंमें पूरा हुआ है । (iii) प्रस्तुत द्वितीय भागमे, उत्तरवर्ती शेष साहित्यका विशद अंकन हुआ है । दिगम्बर साहित्य क्या और कितना है, इसका ऐतिहासिक आकलन इन दोनों भागों तथा पीठिकाम सम्प्राप्त है !

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