Book Title: Jain Pratima Vigyan Author(s): Balchand Jain Publisher: Madanmahal General Stores Jabalpur View full book textPage 9
________________ निवेदन लगभग दस वर्ष पूर्व, मैंने इस पुस्तक के हेतु मूल सामग्री का संग्रह करना प्रारम्भ किया था। पर, दुर्भाग्यवश ऐसी कुछ अननुकूल परिस्थितियां प्रायी कि कार्य बीच में रुक गया। ___ गत वर्ष १९७३ में, मेरे अनेक मित्रों और स्नेहीजनों ने मुझे पुन प्रेरित किया और भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में पुस्तक प्रकाशित किये जाने का आग्रह भी किया। उन्ही हितैषीजनों के सतत प्रदन उत्साह और प्रेरणा के फलस्वरूप जैन प्रतिमा विज्ञान विषयक पुस्तक इस रूप में प्रस्तुत है । इम में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों के आधार पर देवाधिदेव जिन और विभिन्न प्रकार के देवों की प्रतिमानो के संबंध में विचार किया गया है । पुस्तक के प्रथम अध्याय में जन प्रतिमा विज्ञान के अाधारभूत ग्रन्थों का वर्णन है । द्वितीय अध्याय में प्रतिमा घटन द्रव्य तथा पूज्य, अपूज्य और भग्न प्रतिमानों के संबंध में परम्परागत विचार प्रकाशित किये गये हैं। तृतीय अध्याय में तालमान की चर्चा है । चौथे अध्याय में प्रेमठ गलाका पुरुषों का विवरण देते हुये चविंशति तीर्थकरों से संबंधित जानकारी प्रस्तुत की गयी है । तत्पश्चात् भवनवामी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और विशेष कर उन के इन्द्रों के स्वरूप का वर्णन है । ___सोलह विद्या देवियों और शासन देवताओं को जैन देववाद में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । उनके लक्षण छठे और सातवें अध्यायों में वर्णित हैं। आठवें, नौवें, दमवें और ग्यारहवें अध्यायों में क्रमशः जैन मान्यतानुमार क्षेत्रपाल, अप्ट मातृकानों, दस दिक्पालों और नव ग्रहों की चर्चा है । यद्यपि कुछेक जैन ग्रन्थों में चौसठ योगिनियों, चौगमी सिद्धों और बावन वीरों के नामोल्लेखPage Navigation
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