Book Title: Jain Pratima Vigyan
Author(s): Balchand Jain
Publisher: Madanmahal General Stores Jabalpur

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Page 17
________________ आधार ग्रन्थ ५ घर पंडित रचित सरस्वती स्तुति, जिनप्रभसूरि कृत शारदास्तवन, साध्वी शिवार्या द्वारा रचित पठितसिद्ध सारस्वतस्तवन, जिनदनमूरि कृत अम्बिका स्तुति, और महामात्य वास्तुपाल विरचित श्रम्बिकास्तवन श्रादि के नाम गिनाये जा सकते है । इन स्तुतियों मे उन उन देवियों के वाहन, आयुध, रूप आदि का वर्णन किया गया है । तात्रिक प्रभाव के कारण जैनो ने भी तरह तरह के यंत्र, मंत्र, तंत्र, चक्र आदि की कल्पना की । सिद्धान्त रूप से तन्त्रोपेक्षी होने के बावजूद भौ समय की माँग का आदर करने के लिये जैन आचार्यों को भी तात्रिक ग्रन्थों और कल्पो की रचना करनी पडी थी । यह स्थिति मुख्यत नौवी दसवी शताब्दी के साथ आयी । उस प्रवाह मे हेलाचार्य, इन्द्रनन्दि और मल्लिषेण जैसे दिग्गजों ने तात्रिक देवियो की साधना की और लौकिक कार्यसिद्धि प्राप्त की । हेलाचार्य ने ज्वालिनी कल्प की रचना की थी । उल्लेख मिलता है कि उन्होंने स्वयं ज्वालिनी देवी के आदेश से वह रचना सम्पन्न की थी । हेलाचार्य द्रविड संघ के गणाधीश थे । दक्षिण देश के हेम नामक ग्राम मे किसी ब्रह्मराक्षस ने उनकी कमलश्री नामक शिष्या को ग्रसित कर लिया था । उस ब्रह्मराक्षस से शिष्या की मुक्ति के लिये हेलाचार्य ने ग्राम के निकटवर्ती नीलगिरि शिखर पर देवी को सिद्ध किया और ज्वालिनी मंत्र उपलब्ध किया | परम्परागत रूप से वही मंत्र गुणनन्दि के शिष्य इन्द्रनन्दि को मिला किन्तु उन्होंने उस कठिन मंत्र को प्रार्या - गीता छंदो मे रचकर सरलीकृत किया । इन्द्रनन्दि के ज्वालिनी कल्प की प्रतिया उत्तर और दक्षिण भारत के शास्त्र भण्डारा म उपलब्ध है । उनमें दिये गये विवरण से विदित होता है कि ५०० श्लाक संख्या वाले इस कल्प की रचना कृष्णराज के राज्यकाल में मान्यखेट कटक मशक संवत् ८६१ की अक्षय तृतीया को सम्पूर्ण हुयी थी । इन्द्रनन्द द्वारा रचित पद्मावती पूजा की प्रतियाँ भी उपलब्ध हुई है । उनके शिष्य वासवनन्दि की कृतियों का भी उल्लेख मिला है । मल्लिपेण श्रीषेण के पुत्र और प्राचार्य जिनसेन के ग्रग्र शिष्य थे । उनके सुप्रसिद्ध मंत्रशास्त्रीय ग्रन्थ भैरवपद्मावतीकल्प का दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो सम्प्रदायों में प्रचार रहा है । उस ग्रन्थ मे ४०० श्लोक है । ग्यारहवी शताब्दी ईस्वी के इस माँत्रिक विद्वान् की उपाधि उभयभाषाकविशेग्वर थी । उनके द्वारा रचित विद्यानुवाद, कामचाण्डालिनीकल्प, यक्षिणीकल्प और ज्वालिनी कल्प की प्रतिया विभिन्न शास्त्र भण्डारी में सुरक्षित है । सागरचन्द्र सूरि

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