Book Title: Jain Katha Sangraha Part 02
Author(s): Kalyanbodhivijay,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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आराम
सोहाकहा ।
देवप्पभाओ ठिओ सुरोऽवि बंभणीए उवरि कोवं कुणंतो मायत्ति भणिय तीए उवसामिओ गओ सट्ठाणं, तओ ती बंभणीए पमुइयाए तप्पल्लंके णवप्पसूयत्ति नियधूया सुवारिया । खणंतरे तप्पडिचारियाओ समागयाओ तं अप्पलावण्णं किंपि सरिसागारं दट्ठूण धसक्कियहिययाओ जंपन्ति सामिणि ! संपइ किमन्नारिसीव भगवई पलोइज्जइ ? सापि साहरइ-किंपि न मुणेमि, परं मह देहो न सत्थावत्थो, तओ ताहिं भयभीयाहिं तज्जणणीए बंभणीए पुरो निवेइयं, तओ सावि पडुकूडकवडनाडयनडिया करेहिं हिययं ताडयंती पलविडं लग्गा हद्धी दुट्ठदिव्वेणं मुट्ठा, जं वच्छा अन्नारिसरूवा दीसइ, कहं रण्णो मुहं दक्खविस्सं ?, तओ रायभएण विसन्नओ परिचारियाओ चिट्ठति । अह तम्मि समए निवइसमाइट्ठो समागओ मंती, तेणवि, भणियं-जं देवो आणवेइ - देवीसहियं कुमारं सिग्घमाणेउण मह मेलहत्ति, तव्वयणसवणाणंतरं कया सयलावि पत्थाणसामग्गी, तम्मि अवसरे परिवारेण पुच्छिया देवी, कत्थ आरामो ? अज्जवि नागच्छइ, सा भणइ - कूवए नीरपाणट्ठे मए ठाविओ, पच्छा आगमिस्सइ, तओ तीए सह पत्थिऊण परियणो पाडलिपुत्ते पत्तो, वद्दाविओ निवो, तेणावि पमुइयमणेण पट्टाविया हट्टसोहा, पारद्धं वद्धावणयं, सयं संमुहगमणेण दिट्ठा देवी तणओ य, तओ पियाए अन्नारिसं रूवं निरूविऊण संभंतेण राइणा पुट्ठे-अहो !! अन्नारिसिच्चिय तुह तणुसिरी निरूविज्जइ, तत्थ को हेउ ? तओ दासीहिं विन्नत्तं महाराय ! एयाए

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