Book Title: Jain Jatiyo ka Prachin Sachitra Itihas
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 2
________________ श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला पुप्प नं. ८६ श्री रत्नप्रभसूरीश्वरपादपद्मभ्यो नमः अथ श्री जैन जाति महोदय. तीसरा प्रकरण. मत्वा इन्द्र नरेन्द्र फणीन्द्र, पूनित पाद सदा सुखदाई। कैवल्यज्ञान दर्शन गुणधारक, तीर्थंकर जग जोति नगाई ।। रणावंत कृपाके सागर, नलता नागको दीया बचाई। बामानंदन पावजिनेश्वर, धन्दत 'ज्ञान' सदा चितलाई पालित पश्चाचार अखण्डित, नौविध ब्रह्मव्रतके धारी। करी निकन्दन चार कषायको, कब्जे कर पंच इन्द्रियप्यारी॥ पञ्च महाव्रत मेरु समाधर, सुमति पंच बडे उपकारी। गुप्ति तीन गोपि जिस गुरुको, प्रतिदिन बन्दित 'ज्ञान' आभारी। संस्कृत दिव वाणि प्राकृत, रची पट्टावलि पूर्वधारी। तांको यह भाषान्तर हिन्दी, बाल जीवोंको है सुखकारी॥ सरल भाषाकों चाहत दुनियो, परिश्रम मेरा है ।हतचारी। ओसवंस उपकेश गच्छते, प्रगव्यो पुण्य 'ज्ञान' नयकारी ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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