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( ५ )
प्रतिष्ठाथी सिद्ध थाय छे. वायडना देरासरनो नाश सं. १३५४ मां अल्लाउद्दीनना सुबाए कर्यो हतो तेथी पश्चात् १३७०-८० लगभगमां पाहुं नवीन देरासर बन्युं एम जीवदेवसूरिए प्रतिष्ठा करावी तेथी सिद्ध थाय छे. उदा महेताने वायड गाममां वायड वणिक जैनज्ञातिए बंधावेला श्री अजितसागरना देरासरमां त्यां वसवानी स्थिति माटे ते ज्ञातिए गुरुना कहेवाथी साहाय्य आपी हती. कर्णनो समय सं. ११२० थी ११५० नो छे. कर्णना वखतमां गुजरातमां केटलीक वावो बनेली छे. वायडमां पण ते समये वा ते पछी वाव बनेली लागे छे. दरेक वावमां मातानी मूर्तिने गाम लोक तरफथी पधराववामां आवे छे. तेने लोको देवी तरीके मान आपे छे. वायडमां वायड वणिकोना तथा वायडगच्छ संस्थापक तरीके रासिलसूरि प्रसिद्धि पाम्या छे. रासि - लसूरिना समयमां वायडमां जैनोनुं घणं जोर हतुं. ते समये ब्राह्मणो जैन हता. पाछळथी तेओ वैदिक बन्या. वायट वणिकोए भरावेली प्रतिमाओ अमदावाद, पाटण, वडोदरा, सुरत, राधनपुर, वगैरे घणा गामोमां छे. वायड वंशमां देवपाल, धनपाल, शान्तड, आसल, पद्ममंत्री वगैरे मंत्रीओ थया छे. वायड ज्ञाति प्रायः रात्तरमा सैका सुधी जैन धर्म पाळती हती. सोळमा सैकामां तो तेनो पोपो भाग जैन धर्म पाळतो हतो. वायड ज्ञातिना कुलगुरू जैन महात्माओ हाल चाणसमामां वसे छे तेओनी पासे वाडा वाणियानी वही छे तेथी ते जात एक वे सैकाथी वैष्णव तरीके बनेली जणाय छे. सोळमा सेका सुधी तो तेओए जैन प्रतिमाओ भरावी एम देखाय छे पण पछळथी वल्लभाचार्यना पंथमां दाखल एली लागे छे. वायटवंशज्ञातिना स्थापक जैनाचार्यो छे अने मनो जैन ग्रंथोमांथी इतिहास मली आवे छे. आ संबंधी विशेष हकीकत हवे पछी जणाववामां बनशे ते प्रयास करवामां आवशे.
उपकेश ज्ञाति - ओशा नगरीमां जैनाचार्यथी उपके रावंशनी
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