Book Title: Jain Dhatu Pratima Lekh Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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२३३-६४२-१०६०-१०६४-१०८५-१५०८-१५२१ विगैरे लेखोनी प्रतिमाओ डीसावाल ( देसावाल ) जैन वणिकोए भरावी छे. म्हेसाणाना डीसावाल जैन वणिको शा. वीरचंद जादवजी विगेरे १९२५ नी साल सुधी जैनधर्म पाळता हता. अने ते लहुडी पोशाल गच्छना हता. तेमना बापाए तेमनी पालीताणानी देरी सं. १९२८ लगभगमां समरावी हती. म्हेसाणामां चगोठीया अने भाटवाडा आगळ मंगो उपाश्रय हतो. हालपग वीरचंद जादवजीना वंशजो दशा डीसावाल वाणीयाओ श्रीपद्मप्रभुना देहरे वरकन्यानो कंकणदोरो छोडवाने माटे जाय छे. १९४० लगभगनी सालमां तेओने वैष्णव थवाथी नोकारशीमांथी दूर कर्या. पालीताणानी टुंकमां दशा डीसाबालना बंधावेलां देहरां छे. सं. १९२ १ लगभगनी सालमां ते देहराने तेमना तरफथी समराववामां आव्युं हतुं. म्हेसाणा, माणसा, कोलवडा, गोजारीया, लांघणज विगेरे गाममां डीसावालनी वस्ती छे. दिगंबरोमां डिसावाल जैनो हाल पण छे. जैन साधुओनो उपदेश बराबर नहि मलवाथी वल्लभाचार्यना पंथीओनी उपदेशनी असर थतां तओमाथी केटलाक अन्य धर्म पाळवा लाग्या छे. दशा डीसावालनी वस्ती थोडीछे, अने तेओ व्यापार करे छे. ___ नागरज्ञाति-नागर ज्ञाति असलथी जैनधर्म पाळती आवेली छे पत्र ३-१०-३४-५४-४५-९५-११२-२१९-२५० मां नागरज्ञातिना श्रष्ठिओएं भरावेली जैन प्रतिमाना लेखो आप्या छे ते उपरथी सिद्ध थाय छे के १६मा सैफामां नागरज्ञातिना वणिको जैन धर्ममां चुस्त हता. अंचलगच्छना, तपागच्छना ने वडगच्छना श्रावको तरीके नागर वणिको प्रसिद्ध हता. देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणना वखतमा वडनगरना रहीश वणिको में नागर ( नगरमां उत्पन्न थनार ते नागर ) पद आपवामां आव्यु हतुं. नागर वणिकोमांथी घणा आचार्यो, उपाध्यायो ने साधुओ थया त्यारथी नांगरगच्छनी उत्पत्ति थइ. नागरगच्छमां श्रीजिनेश्वरसूरिनामे महा
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