Book Title: Jain Dharm ki Hajar Shikshaye
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 14
________________ ( १० ) को अधिक महत्व देने का संकल्प रहा है । और इसलिए इस ग्रंथ को केवल सुभाषित-संग्रह बनाने की अपेक्षा जैन धर्म की शिक्षाओं का संग्रह बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया है, आशा है इससे न केवल जैन, अपितु धर्म एवं सदाचार में आस्था रखनेवाले प्रत्येक पाठक को लाभ मिलेगा। और मैं तो विश्वासपूर्वक कह सकता हूं कि यदि एक शिक्षा भी सच्चे रूप से आपके जीवन में उतर गई तो आपके लिए अमीर की उस हीरों जड़ी 'कुरान' से भी यह पुस्तक, पुस्तक का वह एक पृष्ठ, उस पृष्ठ की सिर्फ एक पंक्ति अधिक कीमती, अधिक उपयोगी सिद्ध होगी। ___मेरी साहित्य-साधना में उपप्रवर्तक पूज्य स्वामीजी श्रीब्रजलाल जी महाराज के आशीर्वाद का सहयोग तो निरंतर मेरे साथ चलता ही रहता है। उनके स्नेहमय आशीर्वाद से ही यह प्रयत्न सफल हुआ है। साथ ही इस महत्वपूर्ण संकलन की भूमिका लिखी है गाँधीसाहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक-चिंतक एवं मनीषी श्रीयशपालजी जैन ने । मैं उनके सद्भाव, स्नेह एवं सहकार का स्वागत करता हूं। इस संकलन में स्नेही श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' का हार्दिक सहयोग भी पूर्ण हृदय से मिला है, उनके श्रद्धा-पूर्ण सहकार को मैं भुला नहीं सकता। किं बहुना सहकार-सहयोग की भावना बढ़ती रहे और वाङमय का नवनीत पाठकों के हाथों में सतत पहुंचकर उन्हें लाभान्वित करता रहेगा, इसी विश्वास के साथ"" आनन्दनगर (कुशालपुर) -मुनि मधुकर

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