Book Title: Jain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Jain S M Sangh Malwad

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Page 3
________________ (श्लोक - 246) जो श्रावक बारह प्रकार के तप, अनन्तकायादिका पच्चक्खाण, शील और सद्गुणों से युक्त है, उसे निर्वाण और विमान के सुख दुष्प्राप्य नहीं। (योगसागर - श्लोक 33) श्रावक अनेक प्रकार के कर्मों से लिप्त होने पर भी शुभ भाव पूर्वक किये हुए प्रभु पूजा आदि द्रव्य स्तव से समग्र कर्मों का नाश करके शीघ्र मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। हां! मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त है। प्रश्न - क्या जैन सूत्रों में मूर्तिपूजा का उल्लेख है? उत्तर - सूत्रों में उल्लेख तो क्या ! पर सूत्र स्वयं ही मूर्ति है। तद्वत् लिखने वाला मूर्ति, पढ़ने वाला मूर्ति, समझने वाला मूर्ति है, तो सूत्रों में मूर्ति विषयक उल्लेख का तो पूछना ही क्या है? ऐसा कोई सूत्र नहीं जिसमें मूर्ति विषयक उल्लेख न मिलता हो। चाहे ग्यारह अङ्ग, बत्तीस सूत्र और चौरासी आगम देखो, मूर्ति सिद्धान्त व्यापक है, यदि इस विषय के पाठ देखने हो तो हमारी लिखी प्रतिमा छत्तीसी, गयवर विलास और सिद्ध प्रतिमा मुक्तावली नाम की पुस्तकें देखो। (इस पुस्तक के अन्त में भी कुछ सूत्र पाठ दिये गये हैं।) प्र. - सूत्रों को आप मूर्ति कैसे कहते हैं? उ. - मूर्ति का अर्थ है, आकृति (शक्ल) सूत्र भी स्वर, व्यंजन वर्णों की आकृति (मूर्ति) ही तो है। ___प्र. - मूर्ति का तो आप वंदन पूजन करते हो, पर आपको सूत्रों का . वंदन पूजन करते नहीं देखा। उ. - क्या आपने पर्युषणों के अन्दर पुस्तकजी का जुलूस नहीं देखा? जैन लोग पुस्तक जी का किस ठाठ से वन्दन पूजन करते हैं ! शतगुण पुण्य पाउंगा प्रभु को जब में पूजुंगा।

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