Book Title: Jain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Jain S M Sangh Malwad

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Page 11
________________ हैं और अन्य तीर्थियों के चारों निक्षेप अवन्दनीय हैं। प्र. - मूर्ति जड़ है उसको पूजने से क्या लाभ? उ.- जड़ में इतनी शक्ति है कि चैतन्य को हानि-लाभ पहुँचा सकता है। सिनेमा T.V. चित्र लिखित स्त्री जड़ होने पर भी चैतन्य का चित्त चंचल कर देती है। जड़ कर्म चैतन्य को शुभाशुभ फल देते हैं। जड़ भांग, चैतन्य को भान (होश ) भुला देती है। जड़ सूत्र चैतन्य को सद्बोध कराते हैं, जड़ मूर्ति चैतन्य के मलिन मन को निर्मल बना देती है। मित्रो! आजकल का जड़ मैस्मरेज्म और साइन्स कैसे 2 चमत्कार दिखा रहे हैं, फिर यहाँ जड़ के बारे में कोई शंका न करके केवल मूर्ति को ही जड़ जान उससे कुछ लाभ न मानना, अपनी मन्द बुद्धि का द्योतक नहीं तो और क्या है ? 1000 का नोट गुमने पर होश उड़ जाते है व रास्ते में मिलने पर खुश खुश हो जाते हो, ऐसा ही प्रतिमामूर्ति को समझना । प्र. पाँच महाव्रत की पच्चीस भावना और श्रावक के 19 अतिचार बतलाये हैं। पर मूर्ति की भावना या अतिचार को कहीं भी नहीं कहा, इसका कारण क्या है ? उ. - दर्शन की प्रस्तुत भावना में शत्रुंजय, गिरनार, अष्टापदादि तीर्थों की यात्रा करना आचारांगसूत्र में बतलाया है और मूर्ति के अतिचार रूप 84 आशातनाएँ चैत्यवन्दन भाष्यादि में बतलाई हैं, यदि मूर्ति पूजा ही इष्ट नहीं होती तो तीर्थ-यात्रा और 84 आशातना क्यों बतलाते ? प्र. - तीन ज्ञान (मति श्रुति और अवधिज्ञान) संयुक्त तीर्थंङ्कर गृहवास में थे, उस समय भी किसी व्रतधारी साधु श्रावक ने उन्हें वन्दन नहीं किया, तो अब जड़ मूर्ति को कैसे वंदन करे ? उ. - तीर्थङ्कर तो जिस दिन से तीर्थङ्कर नाम कर्म बंधा उसी दिन से वन्दनीय हैं। जब तीर्थङ्कर गर्भ में आये थे, तब सम्यक्त्वधारी, तीन ज्ञान संयुक्त शक्रेन्द्र ने "नमोत्थुणं” देकर वंदन किया था । ऋषभदेव भगवान के शासन के साधु श्रावक जब चौबीसस्तव ( लोगस्स) कहते थे, तब अजितादि 23 द्रव्य तीर्थङ्करों को नमस्कार ( वंदना) करते थे, "नमोत्थुणं" के अंत में पाठ है कि जेअइया सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले । संपइअ वड्डमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि ॥ छोटी - 2 भूलों को Let Go करो, बड़ी भूलों को Let God याने भगवान भरोसे छोड़ दो। (9

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