Book Title: Jain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi Author(s): Gyansundarmuni Publisher: Jain S M Sangh MalwadPage 25
________________ - उ. - कहा तो है पर आपको नहीं दिखता है। भगवती सूत्र श. 3 उ. 1 में अरिहन्त, अरिहन्तों की मूर्ति और भावितात्मा साधु का शरण लेना कहा है और आशातना के अधिकार में पुनः अरिहन्त और अनगार एवं दो ही कही इससे भी सिद्ध हुआ कि जो अहिन्तों की मूर्ति की आशातना है वह ही अरिहन्तों के मूर्ति की आशातना है। आप भी भैरू की स्थापना को पीठ देकर नहीं बैठते हो कारण उसमें भैंरू की आशातना समझते हो। प्र. - भगवान ने तो दान शील तप एवं भाव यह चार प्रकार का धर्म बतलाया है। मूर्ति पूजा में कौनसा धर्म है? ... उ. - मूर्तिपूजा में पूर्वोक्त चारों प्रकार का धर्म है। जैसे (1) पूजा में अक्षतादि द्रव्य अर्पण किये जाते हैं, यह शुभक्षेत्र में दान हुआ। (2) पूजा के समय इन्द्रियों का दमन, विषय विकार की शान्ति, यह शीलधर्म। ___ (3) पूजा में नवकारसी पौरसी के प्रत्याख्यान, यह तपधर्म। (4) पूजा में वीतराग देव की भावना, गुण-स्मरण, यह भावधर्म। यों पूजा में चारों प्रकार का धर्म होता है। प्र. - पूजा में तो हम धमाधम देखते हैं? उ. - कोई अज्ञानी सामायिक करके या दया पाल के धमाधम करता हो तो क्या सामायिक व दया दोषित और त्यागने योग्य है या धमाधम करने वाले का अज्ञान है? दया पालने में एकाध व्यक्ति को धमाधम करता देख शुद्ध भावों से दया पालने वालों को भी दोषित ठहराना क्या अन्याय नहीं है? प्र. - तप संयम से कर्मों का क्षय होना बतलाया है पर मूर्ति से कौन से कर्मों का क्षय होता है वहां तो उल्टे कर्म बन्धन हैं? उ. - मूर्ति पूजा तप संयम से रहित नहीं है जैसे तप संयम से कर्मों का क्षय होता है वैसे ही मूर्ति पूजा से भी कर्मों का नाश होता है। जरा पक्षपात के चश्मे उतार कर देखिये - मूर्ति पूजा में किस किस क्रिया से कौनसे कौनसे कर्मों का क्षय होता है। (1) चैत्यवन्दनादि भगवान के गुण स्तुति करने से ज्ञानाऽऽवरणीय कर्म का क्षय । ब्रह्मचर्य ही जीवन है। वासना तो साक्षात् मृत्यु है।Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36