Book Title: Jain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Jain S M Sangh Malwad

Previous | Next

Page 9
________________ को गया हो, चाहे वे मनुष्य के भव में या चाहे देवताओं के भव में ही, परन्तु . वे मोक्षार्थ मूर्तिपूजक अवश्य हैं। ___प्र. - जब तो जो मोक्ष का अभिलाषी (मुमुक्षु) हो उसे जरूर मूर्ति पूजन करना चाहिये? ___उ. - इसमें क्या संदेह है? क्योंकि आज जो मूर्ति नहीं पूजते हैं अथवा नहीं मानते हैं, उन्हें भी यहाँ पर नहीं तो देवलोक में जा कर तो जरूर सर्व प्रथम मूर्ति पूजन करना पड़ेगा। हाँ! यदि मूर्ति-द्वेष के पाप के कारण उन्हें नरक या तिर्यंच योनि का नसीब हुआ हो तो भले ही वे एक बार मूर्ति पूजा से बच सकते हैं, अन्यथा देवलोक में मूर्ति पूजन जरूर करना ही होगा। ___ प्र. - देवलोक में जाकर मूर्ति-पूजन करना पड़ेगा ही, इसका आपके पास क्या प्रमाण है? ___उ. - देवलोक का कुलाचार है और वे उत्पन्न होते ही यह ही विचार करते हैं कि मुझे पहला क्या करना और पीछे क्या करना और पहले व पीछे क्या करने से हित-सुख कल्याण और मोक्ष का कारण होगा? उसके उत्तर में यह ही कहा है कि पहले पीछे मूर्ति का पूजन करना ही मोक्ष का कारण है। देखो राजप्रश्नीय सूत्र और जीवाभिगम सूत्र का मूल पाठ। ___प्र. - कई कहा करते हैं कि “परचो नहिं पूरे पार्श्वनाथजी, सब झूठी बांतां।" उ. - इसके उत्तर में यही “परचो पूरे है पार्श्वनाथजी, मुक्ति के दाता" ठीक है, क्योंकि परचा का अर्थ लाभ पहँचाना है। अर्थात मनोकामना सिद्ध करना, जो भव्यात्मा प्रभु पार्श्वनाथ की सेवा पूजा भक्ति करते हैं उन्हें पार्श्वनाथजी अवश्य परचो दिया करते हैं (उसे लाभ पहुँचाया करते हैं) उसकी मनोकामना सिद्ध करते हैं, भक्तों की प्रधान मनोकामना मोक्ष की होती है और सबसे बढकर लाभ भी यही है, यदि पार्श्वनाथ परचो नहीं देवे तो फिर उनकी माला क्यों फेरते हो? स्तवन क्यों गाते हो? तथा लोगस्स में हरवक्त उनका नाम क्यों लेते हो? __ प्र. - सूत्रों में चार निक्षेप बतलाए हैं, जिनमें भाव निक्षेपही वन्दनीय है। राग का त्याग व त्याग का सदा राग करो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36