Book Title: Jain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi Author(s): Gyansundarmuni Publisher: Jain S M Sangh Malwad View full book textPage 8
________________ प्र. - जो लोग यह कहते हैं कि “पाछा क्यों आया मुक्ति जाय के जिनराज प्रभुजी" इसका आप क्या उत्तर देते हैं? ___ उ. - “पाछा इम आया, निन्हव प्रगट्या है आरे पाँचवें"-हम लोग तो मूर्तियों को तीर्थंकरों के शास्त्रानुसार स्थापना निक्षेपमान के स्थापित करते हैं, पर ऐसा करने वाले खुद ही मोक्ष प्राप्त सिद्धों को वापिस बुलाते हैं। देखिये, वे लोगहर वक्त चौवीसस्तव करते हैं तो एक 'नमोत्थुणं' अरिहन्तों को और दूसरा सिद्धों को देते हैं। सिद्धों के “नमोत्थुणं" में 'पुरिस सीहाणं' पुरिसवर पुण्डरीयाणं, पुरिसवर गन्धं हत्थीणं' इत्यादि कहते हैं। पुरुषों में सिंह और वर गन्ध हस्ती समान तो जब ही होते हैं कि वे देहधारी हो। इस 'नमोत्थुणं' के पाठ से तो वे लोग सिद्धों को पीछा बुलाते हैं, फिर भी तुर्रा यह कि अपनी अज्ञता का दो - दूसरों पर डालना। सज्जनों! जरा सूत्रों के रहस्य को तो समझो, ऐसे शब्दों से कितनी हंरा और कर्म बन्धन होता है। हमारे सिद्ध मुक्ति पाकर वापिस नहीं आए हैं। पर मोक्ष-प्राप्त सिद्धों की प्रमाणिकता इन मूर्तियों द्वारा बताई गई हैं कि जो सिद्ध मुक्त हो गए हैं उनकी ये मूर्तियें हैं। - प्र. - यदि ये मूर्तिये सिद्धों की हैं तो इन पर कच्चा पानी क्यों डालते हो? ___ उ. - भगवान महावीर मुक्त हो गए, अब तुम फिर यह क्या कहते हो कि अमुक दिन भगवान गर्भ में आए, भगवान का जन्म हुआ, इन्द्र मेरु पर ले जाकर हजारों कलशों से भगवान महावीर का स्नात्र महोत्सव किया इत्यादि जो आप मुंह से कहते हैं, यह क्या है? यह भी तो प्रच्छन्न रूपेण मूर्ति-पूजन ही को सिद्ध करता है, भेद केवल इतना ही है कि तुम तो मात्र वाणी से कहते हो और हम उसे साक्षात् करके दिखा देते हैं। - प्र. - कई लोग कहते हैं कि “मुक्ति नहीं मिलसी प्रतिमा पूजियां, क्यों झोड़ मचावो?" इसके उत्तर में आपका क्या परिहार है। उ. - टेर का उत्तर ही टेर होना चाहिए, अतः हम प्रत्युत्तर में “पूजा बिना मुक्ति न मिले, क्यों कष्ट उठावो?" यह टेर कहते हैं। प्र. - प्रतिमा पूजकर कोई मुक्त हुआ है? उ. - सिद्धों में ऐसा कोई जीव नहीं, जो बिना प्रतिमा-पूजन के मोक्ष मानव जीवन का एक ही सार-दीक्षा बिना नहीं उद्धार।Page Navigation
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