Book Title: Jain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Author(s): Gyansundarmuni
Publisher: Jain S M Sangh Malwad

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Page 22
________________ मूर्ति मानने नहीं मानने के विषय में वि. सं. 1531 के पहिले कोई भी चर्चा नहीं पाई जाती। इसी से यह कहना ठीक है कि जैन-मूर्ति के उत्थापक सबसे पहले लोकाशाह ही है। यदि वीर परम्परा से आने का कोई दावा करते हों तो लोकाशाह के पूर्व का प्रमाण बतलाना चाहिये कारण जैनाचार्यों ने हजारों लाखों मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा की, हजारों लाखों ग्रन्थों की रचना की, अनेक राजा महाराजाओं को जैन धर्म में दीक्षित किया, ओसवालादि जातिएं बनाई इत्यादि। भला! एकाध प्रमाण तो वे लोग भी बतलावें कि लोकाशाह के पूर्व हमारे साधुओं ने अमुक ग्रन्थ बनाया या उपदेश देकर अमुक स्थानक बनाया या किसी अजैनी को जैन बनाया। कारण जिस समय जैनाचार्य पूर्वधर थे उस समय मूर्ति नहीं मानने वाले सब के सब अज्ञानी तो नहीं होंगे कि उन्होंने कोई ग्रन्थ व ढाल चौपाई कविता छन्द का एक पद भी नहीं रचा? बन्धुओ! अब जमाना यह नहीं हैं कि चार दीवारी के बीच भोली भाली बहिनों के सामने कल्पित बात कर आप अपने को सच्चा समझें। आज जमाना तो अपनी मान्यता को प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा मैदान में सत्य बतलाने का है। क्या कोई व्यक्ति यह बतला सकता है कि लोकाशाह पूर्व इस संसार में जैन मूर्ति नहीं मानने वाला कोई व्यक्ति था? कदापि नहीं! .. प्र. - क्या 32 सूत्रों में मूर्तिपूजा करने का उल्लेख है? ___ उ. - यह तो हमने पहले से ही कह दिया था कि ऐसा कोई सूत्र नहीं है कि जिसमें मूर्ति का उल्लेख न हो। कदाचित् आपको किसी ने भ्रम में डाल दिया हो कि 32 सूत्रों में मूर्ति का बयान नहीं है, तो सुन लीजिये :___(1) श्री आचारांग सूत्र दूसरा श्रुतस्कन्ध पन्द्रहवें अध्ययन में सम्यकत्व की प्रशस्त भावना में शत्रुजय गिरनारादि तीर्थों की यात्रा करना लिखा है (भद्रबाहु स्वामीकृत नियुक्ति)। (2) श्री सूत्रकृतांग सूत्र दूसरा श्रुतस्कन्ध छठे अध्ययन में अभयकुमार ने आर्द्रकुमार के लिये जिनप्रतिमा भेजी, जिसके दर्शन से उसको जाति स्मरण ज्ञान हुआ। (शे. टी) ... (3) श्री स्थानायांग सूत्र चतुर्थ स्थानक में नन्दीश्वर द्वीप में 52 मन्दिरों का अधिकार है। जवानी का केन्सर दृष्टिदोष-वासनामयी निगाहें व (20

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