Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 6
________________ मन मानवो नही. ते विषे तथा साधु मुनिरा जनो तथा श्रावकनो शुद्ध प्राचार जे जिन श्राज्ञामे तेनो तथा साधु आधाकरमि क्रीया करे एटले जिन आजा बाहेर वर्ते ते विषे इण पुस्तकमे अनेक दृष्टांत उपर दाखलो बतायोडे ते देखीने शुद्ध मार्गे चालवो जदी साधु श्राव कने मोहरो साधन मिलसी. ___ इण पोथी मांहे प्रथम सामायीक व्रत पड़े श्रावकारा बारा व्रत अनेक द्रष्टांत सहीत पडे ढंढण मुनिको चोढाळीयो पजे साधु आचारनो चोढाळीयो शिवाय अनेक प्रकारना साधु श्राव क श्राचारना निन्न निन्न प्रकारना स्तवनो, स जायो, बूटा बोल थोकडा, इण शिवाय साधुने बावीस परिसहकी फोज प्राविने घरो देवे ते टा ळवाने अनेक द्रष्टांत दाखलाको रस्तो ढाळ यु क्त वर्णन करयो. इण पोथीने बाच्यासु तथा शिख्यासु धर्म मारगरो जाणपणो मिले ने घटमाहे ज्ञानरोप काश हुवेतिणसुंइण पोथीरो नाम "धर्म ज्ञानप्रका श" दिनो सुंबाचणहार घणा जतनसुं राखजो.

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