Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 5
________________ प्रस्तावना. . मनुष्य जन्म आर्य देव तथा उत्तम कुल पाम वो अत्यंत दुर्लन ते पामीने. देव अरिहंत गुरु नीग्रंथ, धर्म,केवळी, नाख्यो,ए तीन रत्न अ मूल्य बे एहनी अोलखान करणेके वास्ते धर्म शास्त्र शिखणो ए नत्तम साधन धर्म ते जिन श्राज्ञा मांहे. ते श्री जिन अाज्ञातो निरवद्य करणीनी साधु श्रावकने आज्ञा आपे पिण सा वद्य करणीनी अापे नही. अने ज्याहां श्राज्ञा ने त्याहां धर्म जिन अाज्ञा नहि त्याहां अध म एहवं जाणी देव श्री बीस बेहेरमान अरि हंत बारे गुणे करी सहित केवल ज्ञान केवल दर्शन करी सहित पंच महाविदेह देत्र विषे विराजमान ने तेवोने देव करी मानवा. अने गुरु निग्रंथ जे पंच महाव्रतना धारक पंच सूम तिने समिता, तीन गुप्तिने गुप्ता तेणे गुरु करी मानवा. पंच नरत क्षेत्रने विपे साधु साधवी श्राद देईने धर्म केवळी नगवंतनो प्ररुप्यो के अहिंसा माहे धर्म, व्रतमाहे धर्म . ते धर्माद रीने शुद्ध मारगे चालवो. अन्य कुदेव, कुगुरु, कुध

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