Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 16
________________ त, महारोअपराधीसादात ॥ खमतादोहिलोए, नहींमोनेसोहिलोए ॥ ५॥सातो देनेलेजाय, आ वालटैपाय ॥खनकरेजरांए. ससनहींतरांए। ॥६॥विणअपराधीहोय. तिणारहिंस्यादोय ॥ मारेजांणतांए, बळे अजाणताए॥७॥म्हारेधां नजोवणरोकांम, गामीचढजावूगाव ॥ खेतीहल खडुए, सूमनिनांणकरूंए ॥ ८॥ तिहांबहूजीव हणाय, किमपालुमुनिराय ॥ नहीसजेईसोए, ग्र हवासेवस्योए ॥ ९॥ प्राकटीनेसांम, जीवमार परोकांम ॥ व्रत जाणताए, नहींअजाणताए । ॥१०॥ महारिइमडीहरजानांहि, चालुंअंधारा माहि ॥ बसतजोवूपंजुनहीए, लेवूमुकुंसहीए ॥ ॥११॥ थाथीलावीरानेम, मोठीसुचाले केम ॥ चोपदहाकणांए, दुपदहटकणाए ॥ १२॥ इमकरताजीवमराय, जीवकायाजुदाथाय ॥ हवा बुधनहींकरीए. बिनाबुधमरीए ॥ १३॥ हणवा बुधहोय, जीवनमाकोय ॥ सेउपयोगकरीए.ऐ सीविगतधरीए ॥१४॥ हिंस्यानांपचखाण. में कीधापरमाण ॥ जावजीकरीए. करणजोगधरी ए ॥ १५॥ धनजेलेबैराग. ज्यांरेसर्वहिंस्यारा

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