Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 12
________________ ठाणं संकामिया जीविया ववरोविया तसमिना मि दूकड।तस्सउत्तरी करणेणं प्रायश्चित करणे णं विसोही करणेणं विसल्ली करणेणं पावाणं क म्माणं निघायणठाए ठामिकाउस्सग्गं अन्नन उ ससिएणं निस्ससीहेणं खासिएणं बिएणं जंना इएणं उद्दविएणं वायनिसग्गेणं नमलिये पित्तमु बाए सुहुमेहिं अंग संचालहिं सहमेहिं दिठि सं चालहिं सुहुमहिं खेलसंचालहिं एवमाइएहिं आगारेहिं अनग्गो अविराहिन हुङिमे कान स्सग्गो जाव अरिहंताणं नगवंताण नमुकारे णं नपारेमि ॥ तावकायं ठाणेणं मोणेणं जाणेणं अप्पाण वोसिरामि ॥ ए इरिया वहियानो का उस्सग्ग करवो पी नमो अरिहंताणं कहिने लोगस्स कहेवा ॥ अथ लोगस्स ॥ लोगस्सनकोअगरे ॥धम्मतिबयरेजिणे ॥ अरिहंतेकित्तइस्सं ॥ चनवी संपिकेचलि॥१॥ नसनमजिअंचवंदे. संनव मनिणंदणंचसमइंच ॥ पनमप्पहंसुपासं, जिणंच चंदप्पहवंदे ॥२॥ सुविहिंचपुप्फदंतं, सीअल सिऊंचवासुपुऊंच ॥ विमलमणंतंचजिणं, धम्म

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