Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund
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॥ श्री वर्द्धमान स्वामिच्यो नमः ॥
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॥ अथ श्रावकरो सामायकविधि लिख्यते ॥
॥ अथ नवकार पंच मंगलरूप ॥ नमो अरिहंताणनमो सिद्धाणं ॥ नमो आय रिश्राएं॥नमो उवकाया ॥ नमो लोए सब साहूणं ॥ तिखुत्तो याहिणं पयाहिणं वंदामि नमोसामि सक्कारेमि समाणेमी कल्याणं मंगलं देवयं चेइयं प जुवा सामि मचएण वंदामि || करेमिनंते सामाइ यं सावऊ जोगं पञ्चखामि जावनियम एकमुहुर्त पजुवासामि दुविहं तिविहेां नकरेमि नकारवेमि मनसा वयसा कायसा तस्सनं ते पक्किमा मि निंदामि ग्रहामि अप्पा वोसिरामि ॥ इरिया वहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमले बीक्कम हरियकम नसाडलिंग पणगद्ग म मक्कासंतापा संकमणेजे मे जीवाविराहिया ए गेंदिया बे इंदिया ते इंदिया उचरिंदिया पंचेंदि या हिया वत्ति लेसिया संघाइया संघ हिया परियाविया किलामिया उदविया ठापान
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