Book Title: Jain Dharm Gyan Prakashak Pustak Author(s): Nana Dadaji Gund Publisher: Nana Dadaji Gund View full book textPage 8
________________ १९९ १९ नवतत्वका तेरे द्वार ११७ २० सत्तावीस बोलनो थोकडो १४४ २१ तारणीका छटा बोल २२ नवतत्वका बुटा बोलनो थोकडो १६३ २३ साधु बावीस परिसह सहे तीणरी ढाळा बावीस १७३ २४ ग्यानरा दुहा नव २५जिन धर्मका सवैया दोय २०० ॥ इति खतावणी समाप्त. ॥ . इण पुस्तक माहे घणा नपयुक्त घणा बिस्ता र युक्त अनेक दृष्टांत सहित जिनधर्म आज्ञा केयळी नाखीत शुद्ध साध श्रावकने जाणवाने योग्य इसा पचीस विपय अधिकार लिख्यावे. तिणने नणशी गणशी तथा जिन प्राज्ञामांहे चालशी तिणारे कायारो कल्याण इशी. __ ा पोथी शुद्ध कराईने उपाई पीण है स्त दोष अथवा नजर चकसुंदर काना मा त्रा बत्ति अथवा कमती हुवेतो सुज्ञ जनोए सु धारीने बाचजो इसी हमारी सूचना. नाना दादाजी गुंडPage Navigation
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