Book Title: Jain Dharm Author(s): Sushilmuni Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 6
________________ मारमा PHARNADP अन्य सम्मतियाँ भारतीय गणतंत्र के उपराष्ट्रपति, विश्वविख्यात दार्शनिक सर्वपल्ली डाक्टर राधाकृष्णन् मै दृढता पूर्वक कह सकता हूँ कि आज के युग मे राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं में अहिंसा का हमारे लिये महान् मूल्य है। फिर भी वाधा यह है कि हम अहिंसा के सम्बन्ध में बात करते है, किन्तु अहिंसा को जीवन में नहीं उतारते। यदि यह ग्रन्थ (जैन धर्म) पाठकों के अन्त करण में अहिंसा की प्रतिष्ठा कर सफा तो यह महान्तम कार्य होगा। नितम्बर २६-१९५८ नई दिल्ली सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्र कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त, एम० पी० श्री मुनि मुशील कुमार जी ने यह ग्रन्थ लिख कर मेरी सम्मति मे राष्ट्र भारती को एक रत्न को भेंट दो है। इससे जैन धर्म का विश्वसनीय स्वरूप ममाने में नहायता मिलेगी। फारण, यह एक अधिकारी विद्वान् के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। बीच-बीच में रमणीय उद्धरणों ने इसे और भी स्मरणीय बना दिपा है। मैथिली शरणPage Navigation
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