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किया जाता है, जैसे कि भविष्यदत्तकथा में प्रविष्यदत्त सुमित्रा की रक्षा के लिए युद्ध करता है और अपनी शूर वीरता प्रदर्शित करता है।
३-कथानक-रूढ़ियों के साथ ही प्रबन्ध-रचना एवं संघटना में भी साम्य लक्षित होता है। ईश-चन्दना, नम्रता-प्रदर्शन, कवि या काव्य-रचनाओं का उल्लेख, काव्य पढ़ने का अधिकारी, काव्य विषयक संकेत तथा मान्यता आदि बातों का उल्लेख परम्परागत रूढ़ियाँ हैं जिनका प्रचलन सम्भवतः प्राकृत-युग से हुआ है। ___ कहा जाता है कि हिन्दी के सूफी काव्यों की रचना "मसनवी शैली में हुई है। मसनवी का अर्थ "दो" है। इस में प्रत्येक शेर के दो मिसरे होते हैं। इसका प्रत्येक शेर छन्द और भावकी दृष्टि से पूर्ण होता है। मुक्तक की भाँति इनमें भाव या चित्र पूर्ण होता है तथा वाक्य-रचना भी कसी हुई रहती है। मिसरे समतुकान्त होते हैं, जिनका आगे की पंक्तियों से तुक की दृष्टि से कोई सम्बन्ध नहीं होता। काव्य सगों में या परिच्छेदों में विभक्त न होकर विषयानुरूप शीर्षकों में तथा घटनाओं में आबद्ध रहता है। और फिर, इस शैली में लिखा गया किसी भी प्रकार का प्रबन्ध काव्य क्यों न हो वह मसनवी माना जायगा।' फिरदौसी का "शाहनमा" और "यूसुफजुलेखा" मसनवी काव्य माने जाते हैं। किन्तु अपभ्रंश कथाकाव्य तथा चरितकाव्य की रचना सन्धिबद्ध होती है और सन्धि या परिच्छेद "कडवकबद्ध" होते है। 'कडवक' पद्धडिया, अडिल्ला या उसी आकार के किसी छन्दों का समूह होता है जिसमें किसी एक दृश्य या भाव का वर्णन रहता है। अपभ्रंश में कडवकों तथा उनमें विहित छन्दों की संख्या नियत नहीं है। साधारणतः एक कडवक में
आठ यमक या सोलह पंक्तियों का प्रयोग किया जाता रहा है। परन्तु कई काव्यों में अठारह, बीस, बाईस, चौबीस, तीस, बत्तीस और छत्तीस तक पंक्तियाँ तथा छन्द एक कडवक में लक्षित होते हैं। कडवक द्विपदी या दुवई अथवा दोहा या दोहा के आकार के किसी छन्द से जुड़े रहते हैं। कहीं-कहीं कडवक के आदि में और कहीं-कहीं अन्त-आदि दोनों में दोहा के आकार का कोई न कोई छन्द संयुक्त रहता है। अधिकतर अन्त में ही जुड़ा देखा जाता है। प्रबन्ध रचना की यह शैली अपभ्रंश तथा हिन्दी के प्रेमाख्यानक काव्यों में समान रूप से मिलती है। वस्तु, घटना, कथानक-रूढ़ि तथा चरित्र चित्रण के ही नहीं प्रबन्ध-रचना में भी सूफी काव्य अपभ्रंश-काव्यों की परम्परा से प्रभावित जान
१-देखिये, हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप विकास, पृ. ४१६ ।