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श्रमण संस्कृति पर एक तुलनात्मक अध्ययन
[ मुनिश्री दुलीचन्द 'दिनकर'] भारतीय साधु परम्परा दो भागों में विभक्त है। वैदिक संस्कृति में विकास पाने वाले साधु संत-परम्परा के नाम से प्रसिद्ध है और जैन तथा बौद्ध संस्कृति में विकसित होनेवाली साधु-परंपरा श्रमण-परम्परा के नाम से विख्यात है। भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध दोनो समकालीन थे। बहुत बड़ी संख्या में उनके शिष्य-शिष्यों के समकालीन होने के कारण दोनो परम्पराओ की संस्कृति बहुत कुछ मिलती जुलती सी है। जैसेबौद्ध-यम्हि सच्चं च धम्मो च, अहिंसा संयमो दमो। स वे वन्तमलो धीरो, सो थेरोति पवुच्चति ।।
[धम्मपद १६/६] जैन-धम्मो मंगलमुक्किट, अहिंसा संजमो नवो। देवा वि तं नमंसन्ति, जस्स धम्मे सयामणो ।
[दशवे० १११] बौद्ध-कतिहं चरेय्य सामज्य, चित्तं चे न निवारये। पदे-पदे विसीदेय्य, सङ्कप्पानं वशानुगो।।
[संयुत्त० दुक्करसुत्त०] जैन-कहनु कुजा सामण्णं, जो कामे न निवारए । पए पए विसीयन्तो, संकप्पस्स वसं गओ ।।
[दशवे० २११] बौद्ध-कालपब्बासकासो, किसो धम्मनिसन्थती। मत्सब्सूअन्नपानम्हि, अदीनमनसो नरो ॥
थेर गाथा २४३ ] जैन-कालीपब्बंगसंकासे, किसे धमणिसंतए। मायन्ने असणपाणस्स, अदीणमणसो घरे॥
। उत्तराध्ययन २२३]