Book Title: Jain Center of America NY 2005 06 Pratishtha
Author(s): Jain Center of America NY
Publisher: USA Jain Center America NY
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भगवान
महावीर
आ
जसे 2600 वर्ष भी शा के क्षत्रिय नगर मे प्रभ महावीर का अवतरण हुआ ब
सौभाग्यशाली दिन था महा त्रयोदशी का महावीर के पापाद पिता श्री मिलाप क्षत्रिय कर के राजा से बात त्रिशला भ्रमपरायणा नारी दी।
वैशाली नहालीन निजी जि क्षत्रियो का द्वितीय वैभव सम्पन्न गौरवशाली जनतन्त्र पा स्वतन्त्रता का प्रथम सत्र जनतहीन भ का अगवान धमका शान
अवतरण स्वतन्त्र धरा पर महावीर स्वनवता को तत्व स्वीकार करते है
पूर्ण स्वतंत्रता का तय है किसी भी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य प्राणी का हनन शोषण, संपीड़न एवं दासत्व नही होना चाहिए दूसरे शब्दों में कहना चाहिए "अपने ऊपर अपना तन्त्र (शासन) वा आत्म-नियंत्रण ।
महावीर ने ज्यो ही काल का जा उन्हें बहू और शोषण उत्पीरन कन्दन अधकार ही अधकार परिलक्षित हुआ । दाना की जंजीरें इतनी प्रसाद हो चयी थी तोड़ना सहज कार्य न था महावीर की आत्मा नारी जाति के दमन, अत्याचार एवं शोषण का देख कर तो चीत्कार कर उठी थी ।
उन्होंने मन ही मन सक कर लिया कि ऐसी घिनौनी एवं मी प्रथाओं को मुलत: उन्मुलन करके ही माग लगा ।
ब्रारूपी विष का एक अकर हो तो उस सहजतया मसला जा सकता है किन्न महावीर तो जिधर देखते उधर ही विताए विग्नन थी दिनानदिन बायका विषय रहा था और महावीर की आत्मा कन्दन कर रही थी।
हो
महावीर ने ज्यो ही पवनावस्था मे किया, उनकी अन्तरात्मा में वैराग्याया करने लगा। भाई-बहन का माह-समन्व राज ताज का लालच उन्ना न पाया और 30 वर्ष से भरे पुरष्क कर गए जंगलों की ओर
गाव बना रह कर प्रभु ने घोर तपश्चर्या की तथा वन्य ज्योति को प्राप्त किया ।
सम्बोधि की सम्प्राप्ति के
उपास
करुण हृदय समाज के समान के लिए दवित हो उठा और ग्रामग्राम नगर नगर में उदघोष करने लगे मामा ह किसी भी जीव की हिंसा मत करो।
प्रेम के मखारविन्द मे पण आमाम मन्दाकिनी बह निकली बह-बर राजा
की हिना से हम सत्य आदि के बन परण किए तथा अनेक राजकमारो ने किशोर वय में परोपकारार्थ पढज्या धारण की।
महावीर के उपदेशों ने नारी जाति के को तो भीतर तक कर दिया। उनकी
मधुप्त चेतना जागृत हो उठी। बहन- मी राजकुमारिया महावीर के कठिन साधना-पंथ को अंगीकार करने को म
अन्दिर उद्घाटन के अवसर पर
महावीर तो उदार हृदय वाले थे. उन्होने सर्वप्रथम राजकुमारी चंदन बाला को प्रवजित करके तत्कालीन समाज भीरूओ एवं नारी को खरीद-फरोख्त का माल समझने वाले अहकारी राजाओ मेठ साहूकारों पर करारी चोट की। सभी महावीर के विरोध मे उठ रे हुये ।
ज्या-ज्या विरोध बढ़ता गया महावीर त्या-त्या नारी जाति को अपने में जिन करने गये
सन्यास देते गये और महावीर बनकार कर कहते कि नारी भी मक्ति के लिये चर्च कर सकती है। वह किसी भी अशम से कम नहीं
नारी- उत्क्रान्ति के मसीहा
बिकनी थी लगती थी की। यह भी है जिनकी म दाम दामिया अधिक होती. उस उनीह सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती । अनएव होने लगी हुई थी कि कौन अधिक दास-दासिया सरी ।
उनके भाव लगते थे बालिया ओ से भी बरी का भी नारियो
ज्ञातव्य है कि उसमे नारी जाति का पैर की भी जान बगौती क
रूप में रखा जाता था । सरे बाजार नारिया महावीर तो उदार हृदय वाले थे, उन्होंने सर्वप्रथम राजकुमारी
चन्दन बाला को प्रव्रजित करके तत्कालीन समाज भीरूओं एवं नारी को खरीद-फरोख्त का माल समझने वाले अहंकारी राजाओं, सेठ साहूकारों पर करारी चोट की। सभी महावीर के विरोध में उठ खड़े हुए ।
विरुद्ध करता रहे उसे महावीर का
हैं
यह भी सत्य है कि वैदिक काल में गार्गी और मेची जैसी नारियों ने सन्यास ग्रहण कर
नारी जाति में प्राण फूंके थे किन्तु महावीर के
में नारी की दशा अत्यन्त शोचनीय हो नकी दीदीलिये महात्मा बद्ध जो महावीर के समकालीन ही थे मे
नारी जाति के प्रवेश का निषेध करते रहे।
किन्न महावीर ने नारी जाति की मक्नि द्वार अनावत कर दिए तो दिए सदा-सदा के
गुरुदेव डा. योगीश
लिये यह आश्चर्यजनक सत्य है कि महावीर ने अपने युग में 36000 नारियों को संन्याम के उस पर अगर किया जिनकी प्रमुख माध्वी बदन] जाना पी यह उम्र युग की महती महान क्रांति कही जा सकती है। सबसे बड़ी कान समाज में आसून चल परिवर्तनकारी काति] आज भी महावीर सच में नारी जाति काबा है। यदि भारतवर्ष में आज 2500 से
योगीश कुमार जी महाराज कैलिफोर्नियों W.SA.
कुछ जैन मानता वही 30000 भी अधिक है। यह महावीर का नापिनि
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का वैक अहा कहा जा सकता है भ का नाम ही महावीर या अर्थान बहुत बड़ा शरवीर बहादर जा विरोधों को बहस करके
"और प्रभु
से जुझने र मलये कहा जाता है कि महावीर तीर्थकर अथवा पैगम्बर के नहीं अपितु समाज समुद्धारक तथा बहुत बड़े कॉलिकारी थे और नारी जाति के ममी ।