Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 7
________________ (५) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकूचारित्रकी एकता अर्थात् निश्चयसे शुद्धात्मा या निर्वाण स्वरूप अपना श्रद्धान व ज्ञान व चारित्र या स्वानुभव ही निर्वाण मार्ग है । इस स्वानुभव के लिये मन, वचन, कायकी शुद्ध क्रिया कारणरूप है, तत्वस्मरण कारणरूप है, आत्मबलका प्रयोग कारणरूप है। शुद्ध भोजनपान कारणरूप है, बौद्ध मार्ग है। सम्यग्दर्शन, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यकू आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति, सम्यक् समाधि । सम्यग्दर्शन में सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञानमे सम्यक् सकल्प सम्यक्चारित्र में शेष छ गर्मित है। मोक्षमार्गके निश्चय स्वरूपमें कोई भेद नहीं दीखता है । व्यवहार चरित्रमें जब निर्ग्रथ साधु मार्ग वस्त्ररहित प्राकृतिक स्वरूपमें है तब बौद्ध भिक्षुके लिये सवत्र होनेकी आज्ञा है । व्यवहार चारित्र सुलभ कर दिया गया है । जैसा कि जैनोंमें मध्यम पात्रोंका या मध्यम व्रत पालनेवाले श्रावकका ब्रह्मचारियोंका होता है । अहिसाका, मत्री, प्रमोद, करुणा, व माध्यस्थ भावनाका बौद्ध और जैन दोनोंमे बढिया वर्णन है । तत्र मासाहारकी तरफ जो शिथिलता बौद्ध जगतमें आगई है इसका कारण यह नहीं दीखता है कि तत्वज्ञानी करुणावान गौतमबुद्धने कभी मास लिया हो या अपने भक्तो मासाहारकी सम्मति दी हो, जो बात लकावतार सूत्रमे जो मस्कृत से चीनी भाषामें चौथी पाचवीं शताब्दी में उल्था किया गया था, साफ साफ झलकती है। पाली साहित्य सीलोन में लिखा गया जो द्वीप मत्स्य व मासका

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