Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02 Author(s): Shitalprasad Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ ( ७ ) बिलकुल शुद्ध है, है ऐसा माना जा सक्ता है । ऐसा तो कहा नहीं जा सक्ता । जैन साहित्य मिलने का कारण यह है कि गौतमबुद्धने जब घर छोडा तर ६ वर्षके बीच में उन्होंने कई प्रचलित स धुके चारित्रको पाळा । उन्होंन दिगम्बर जैन साधु के चारित्रको भी पाला । अर्थात् नग्न रहे, क्शलोंच किया, उद्दिष्ट भोजन न ग्रणक्रिया बादि । जैसा कि मज्झिमनिकाय के महासिंहनाद नामके १२ वे सूत्रसे प्रगट है । दि० जैनाचार्य नौमा शतान्दीमें प्रसिद्ध देवसेनजी कृत दर्शनसारसे झलकता है कि गौतमबुद्ध श्री पार्श्वनाथ तीर्थकर की परि पाटी प्रसिद्ध पिहितास्त्रच मुनिके साथ जैन मुनि हुए थे, पीछे मतभेद होनेस अपना धर्म चलाया । जैन बौद्ध तत्त्वज्ञान प्रथम भागकी भूमिका से प्रगट हाल कि प्राचीन जैन्धर्म और बौद्धधर्म एक ही समझा जाता था । जैसे जैनोंमें दिगम्बर व शेतावर भेद होगय वैसे ही उस समय निर्ग्रय धर्म भेदरूप बुद्ध धर्म होगया था । पाली पुस्तकों का बौद्ध धर्म प्रचलिन बौद्ध धर्मसे विलक्षण है । यह बात दुमरे पश्चिमीय विद्वानोंने भी मानो है । मिश्रण रहित है, बौद्ध साहित्य के (1) Sacred book of the East Vol XI 1889– by T W Rys Davids, Max Muller Intro Page 22 - Budhism of Pa/1_Pitakas_15 not only a quite different thing from Budhism as hitherto conmmonly received, but is autogonistic to itPage Navigation
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