Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 14
________________ (42) जगतसिंहजी बा० महावोरप्रसादजी वकीलके पास ही रहकर कार्य करते है | ला जगतसिहजी सरल प्रकृतिके उदार व्यक्ति है। आप समय २ पर व्रत उपवास और यम नियम भी करते रहते है । आप त्यागियों और विद्वानोंका उचित सत्कार करना अपना मुख्य कर्तव्य समझते है । हिसार में ब्रह्मचारीजीके चातुर्मास के समय आपने बडा सहयोग प्रगट किया था । उक्त चारों भाइयो में परस्पर बड़ा प्रेम था, किसी एककी मृयुपर सब भाई उसकी और एक दूसरेकी सतानको अपनी सतान समझते थे । ला० ज्वालाप्रसादनीके पिता का ० केदारनाथजी फतिहाबाद (हिसार) में अर्जीनवीसीका काम करते थे, और उनकी मृत्युपर ला ज्वालाप्रसादजी फतिहावादसे आकर हिसार में रहने ar गये, और वे एक स्टेट में मुलाजिम होगये थे । वे अधिक घन बान न थे, किन्तु साधारण स्थिति के शात परिणामी, सतोषी मनुष्य थे । उनका गृहस्थ जीवन सुख और शांतिसे परिपूर्ण था । सिर्फ ३२ वर्षकी अल्प आयु में उनका स्वर्गवास होजाने के कारण श्रीमतीभी २७ वर्षकी आयुमे सौभाग्य सुख से वचित होगई । पतिदेवकी मृत्यु के समय आपके दो पुत्र थे । जिसमें उस समय महावीरप्रसादजीकी आयु ११ वर्ष और शातिप्रसादजीकी आयु सिर्फ छ मासकी थी । किन्तु ला० ज्वालाप्रसादजी (ला० महावीरप्रसजी के पिता ) की मृत्यु के समय उनके चाचा ला० सरदारसिंहजी जीवित थे उस कारण उन्होंने ही श्रीमती जीके दोनों पुत्रोंकी रक्षा व शिक्षाका भार अपने ऊपर लेलिया और उन्होंकी देखरेख में

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