Book Title: Jain Bauddh Tattvagyana Part 02
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 11
________________ ( ९ ) है कि आत्म रमणा बढे उतना ही बाहरी उपवासादि तप करो । गौतम मर्यादा रहित किया तब घबड़ाकर उसे छोड़ दिया और जैनोंके मध्यम मार्ग के समान श्रावकका सरल मार्ग प्रचलित किया । पाली सूत्रों के पढ़ने से एक जैन विद्यार्थीको वैराग्यका अदभुत आनन्द आता है व स्वानुभवपर लक्ष्य जाता है, ऐसा समझकर मैने मज्झनिकाय के चुने हुए २५ सूत्रोंको इस पुस्तक में भी राहुल aa हिंदी उल्था के अनुसार देकर उनका भावार्थ जैन सिद्धात से मिलान किया है। इसको ध्यानपूर्वक पढनेसे जैनको और बौद्धोंको तथा हरएक तत्वखोजीको बड़ा ही काम व आनद होगा । उचित यह है कि जैनोंको पाली बौद्ध साहित्यका और बौद्धोंको जैनोंके प्राकृत और संस्कृत साहित्यका परस्पर पठन पाठन करना चाहिये । यदि मासाहारका प्रचार बन्द जाय तो जैन और बौद्धों के साथ बहुत कुछ एकता होती है । पाठकगण इस पुस्तकका रस लेकर मेरे परिश्रमको सफल करें ऐसी प्रार्थना है । हिसार ( पंजाब ) ३-१२-१९३६ } ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जैन ।

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