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JAINA CONVENTION 2011
नकारात्मक द्रष्टि, निषेधात्मक सोच, विध्वंसमूलक उर्जा को उत्पन्न करती है। यही महाविनाश को निमंत्रण देती है ।
भारतीय संस्कृति में वही जीवन वास्तविक जीवन कहलाता है, जो ऊंचे लक्ष्य के लिये समर्पित होता है । एक बहुत ही मूल्यवान जीवन सूत्र है
शान्तं तुष्टं पवित्रं च, सानंदमिति तत्त्वतः । जीवंत जीवनं प्राहुः भारतीय सुसंस्कृतौ ॥ शांतिपूर्ण, संतुष्ट, पवित्र और आनन्दित जीवन ही जीवन होत है। ऐसा संकल्पित जीवन जीना और ऐसे उन्नत लक्ष्य से प्रतिबद्ध जीवन धारा के बहाव में सहयोगी बनना - यह भारतीय चिन्तन का अमृत है।
उपरि निर्दिष्ट जीवन मूल्यों के विकस हेतु व्यक्तिगत और सामूहिक जागरूक प्रयत्न अपेक्षित है।
व्यक्तिगत स्तर पर अहिंसा और संयम प्रधान जीवन शैली का विकास हो। अपनी असीम आकांक्षाओं का परिसीमन हों। भोगोपभोग का संयम हों। यातायाम सीमित हो। बिजली पानी का अनावश्यक उपयोग न हो। पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढे। प्रदूषण न फैलाएं। प्राकृतिक स्त्रोतों का अतिदोहन और अति भोग पर्यावरण को क्षति पहुंचाते हैं। पर्यावरण का प्रदूषण सम्पूर्ण पृथ्वी और प्राणीजगत के अस्तित्व के लिए संकट उत्पन्न करता है। इसकी चरम परिणति है महाविनाश, जिसमें न व्यष्टि बचेगी, न समष्टि ।
"Live and Help Live" मैत्री, प्रमोद करुणा और मध्यस्थ भावना का विकास भी सामाजिक संतुलन और सुखी - समृद्ध नये विश्व के निर्माण का सशक्त आधार बनता है।
जैन समाज अहिंसा और शान्तिप्रिय समाज है। वह पर्यावरण का सजग प्रहरी है। वह उदार है। उसकी त्याग भावना सुपरिचित है। अमेरिका के विकास में जैसे ज्यु समुदाय का विशेष योगदान है, वैसे ही भारत की एकता, आर्थिक समृद्धि और विकास में जैन समुदाय सदा आगे रहा है। विदेशों में भी प्रवासी भारतीयों की, उसमें भी जैन लोगों की अपनी अलग ही छवि है। वे अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्य और दायित्व को प्रमुखता देते हैं। वे लेना ही नहीं, देना भी जानते हैं। उनका विश्वास है
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अपने में सब कुछ भर कर कैसे व्यक्ति विकास करेगा ?
यह एकान्त स्वार्थ भीषण है, अपना नाश करेगा ॥ समाज की स्वस्थता और जीवन्तता के लिए जैन समाज को प्रारम्भ से ही साधर्मिक वात्सल्य के संस्कार मिले हैं। दक्षिण भारतीय जैन समाज में सेवा और सहयोग की भावना प्राचीन समय से ही पुष्ट थी । अन्नदान, वस्त्रदान, औषध दान और शिक्षा दान से संबंधित बहुआयामी समाज सेवा में वह अग्रणी रहा है ।
अस्तु: उन्नत लक्ष्य से प्रतिबद्ध, जीवन मूल्यों पर आधारित जीवन जीना और नये मानव, नये विश्व के निर्माण में सहयोगी बनना, यह वर्तमान योग की महत्तम अपेक्षा है। अणुव्रत, अहिंसा प्रशिक्षण, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान ये चार सोपान, उर्ध्वारोहण में सहयोगी बन सकते हैं।
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