Book Title: JAINA Convention 2003 07 Cincinnati OH
Author(s): Federation of JAINA
Publisher: USA Federation of JAINA

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ अहिंसा और अनेकांत का आचरण आवश्यक श्री अमरेन्द्र मुनि जी भगवान महावीर ने असीम करुणापूर्वक जो सिध्दांत प्रदान किये हैं उन सिध्दांतों में अहिंसा और अनेकांत के सिध्दांत का अनठा महत्व है। ये दो सिध्दांत ऐसे सिध्दांत है कि इन्हें जीवन व्यवहार में अपनाकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं को सुगमता पूर्वक समधान दिया जा सकता है। अहिंसा और अनेकांत के सिध्दांत में परम सुख और शांति का समावेश है। मैंने न केवल देश अपितु विदेश के विविध प्रांत प्रदेशों में भगवान महावीर के सिध्दांतों के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से अनेकों बार यात्राएं की है। जनजन से निकटतमसम्पर्क साधा है। अभी कुछ समय पहले मैंने भारत के कछ क्षेत्रों में परिभम्रण के बाद विदेश की ओर प्रस्थान किया। मैंने देखा सर्वत्र जनमानस आंतरिक स्तर पर अत्यंत उब्देलित एवं अशांत है। जहां तक मैनें अनुभव किया इस उव्देलन और अशांति के मूल में हिंसा और दुराग्रह की अवस्थिति है। - कई लोगों की आज यह धारणा सी बन गई है कि हिंसा और आंतक का वातावरण पैदा करके शांति और सफलता लाएगें पर जों ऐसी धारणा बनाकर चल रहे हैं वे भारी भूल में हैं। हिंसा किसी भी सम्सया का समाधान नहीं है। आग से आग को नहीं बुझाया जा सकता। खून से सने कपड़े को खून से साफ नहीं किया जा सकता। आज प्रत्येक व्यक्ति हिंसा और आंतक से परेशान हो चका है। कोई भी हिंसा और आतंक को एक पल के लिए भी पसंद नहीं कर सकता। प्रत्येक चाहता है कि अहिंसा, अभय और प्रेम का वातावरण निमित हो और प्रत्येक उस वातावरण में निर्विघ्न रूप से अपनी जीवन-यात्रा को पूर्ण करें। चिन्तन के क्षणों में मझे एक बात लगी है कि हमें सौभाग्य से अहिंसा और अनेकांत जैसै जो सिध्दांत मिले हैं, इन सिध्दातों का पूरी प्रामाणिकता और हार्दिकता के साथ आचरण किया जाए। सारी समस्याएं दरअसल हिंसा और दुराग्रह के कारण ही बढ़ती हैं। अहिंसा, हिंसा पर विराम है एवं अनेकांत दुराग्रहों का उन्मूलन है। इस ओर यदि ध्यान दिया गया तो सम्पूर्ण रूप से शांति सुनिश्चित है। With Best Wishes and Congratulations to JAINA 2003 Convention Hotel, Motel, & Stores Business Corp. Bipin Shah LENDERS OF JAINA CONVENTION 2003 JAINA would like to thank the following individuals/committees for extending temporary loans to the 2003 JAINA Convention. These loans play an important role in relieving the cash flow problem because invoices come due long before all the donations are received. We had to secure similar loans during the 2001 JAINA Convention too but they were refunded to all the lenders after the Convention. 1.Young Jain of America (YJA)* 10,000 2. Kirit Daftary 5,000 3. Sushil Jain 5,000 4. Udai Jain 5,000 1. Ilaben Mehta 5,000 5. Manibhai Mehta 5,000 6. Dilip V Shah 5,000 7. Anop R Vora 5,000 Total 45,000 *YJA Board was to consider extending the loan up to $20,000 as of the press time. 526Wise Rd. Schaumburg, IL 60193 Phone & Fax: 8479124942 e-mail: Bipinshah@yahoo.com 35 For Private & Personal Use Only Jain Education Interational 2010_03 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156