Book Title: JAINA Convention 2003 07 Cincinnati OH
Author(s): Federation of JAINA
Publisher: USA Federation of JAINA

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Page 63
________________ अहिंसा परमो धर्मः शिवानन्द शर्मा विजयनगर, मेरठ, भारत धर्म मनुष्य की मांग है तथा आत्मा का आहार है। पशु-पक्षी चेतना का पूर्ण विकास न होने के कारण चिन्तन नहीं करते तथा वे धर्म अधर्म को नही जानते । मनुष्य चिन्तनशील होता है तथा धर्म - अधर्म पर विचार कर सकता है किन्तु सभी मनुष्य उच्चस्तरीय चिन्तन नहीं करते तथा पशुओं के स्तर पर रहकर अन्धकार में भटकते रहते हैं । जो थोड़े से चिन्तनशील महापुरुष विचार और अनुभव के आधार पर आत्मकल्याण एवं लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं, वे धन्य होते हैं। अतीत में धर्म के नाम पर समस्त विश्व में अनेक युध्द हुए हैं किन्तु वे धर्मयुध्द नहीं थे। हमारे इस विज्ञानप्रधान युग में धर्म के नाम पर लगभग सम्पूर्ण विश्व में विनाशकारी कृत्य हो रहे हैं। हमारा धर्म ईश्वरीय है तथा सर्वश्रेष्ठ है और मानवमात्र में इस का वर्चस्व स्थापित करना ईश्वर पूजा है तथा परम पुण्य है, ऐसा मानने वाले लोग निर्दोष जन की हत्याएं कर रहे हैं तथा पूजास्थलों एवं राष्ट्रीय महत्व के भवनों पर आक्रमण करने में 'धर्म' से प्रेरणा ले रहे हैं। बर्बरता एवं क्रूरता को महिमामण्डित करने वाले मानव-पशुओं ने सर्वत्र असुरक्षा की स्थिति उत्पन्न कर दी है। आश्चर्य तो यह है कि अनेक शिक्षित जन और धर्मप्रमुख व्यक्ति उन के प्रेरक हैं यदपि वे सभ्य समाज की मिथ्या सन्तुष्टि के लिए आतंकवाद की मौखिक निंदा भी कर देते हैं। आतंकवादी संगठनों को प्रोत्साहन और प्रक्षय देने वाले भी परोक्ष में आतंकवादी ही हैं । समस्त देशों में दिनरात हत्याएँ मानव के अस्तित्व के लिए एक संकट हो गयी हैं। राजनीति इतनी दूषित हो गई है कि राजनेता एकजुट होकर कोई पग नहीं उठाते तथा वे या तो गुप्त एवं प्रकट रूप से आतंक को समर्थन दे रहे हैं या मूक दर्शक हो गये हैं। निरीह पशुओं की बलि को धर्म-सम्मत कहना धर्मान्धता है। प्रश्न है परम धर्म अथवा सच्चा धर्म क्या है? जो केवलमात्र व्यक्ति और समाज को तथा राष्ट और विश्व को ही नहीं बल्कि समस्त जीवों को भी जीनें का पूर्ण अधिकार और सब को सुरक्षा दे वही धर्म कल्याणकारी हो सकता है। निश्चय ही, अहिसां धर्म सर्वोपरि है। परम धर्म श्रुति विदित अहिसां (रामचरितमानस) । अहिंसालक्षणों धर्मः। अहिंसा ही धर्म का लक्षण एवं प्रमाण है। जिस धर्म में व्यापक अथवा उदारवादी दर्शन विचारधारा नहीं है, उसे धर्म की संज्ञा नही दी जा सकती है। वह निष्प्राण है। भारत के सभी प्राचीन ग्रन्थों ने और महापुरुषों ने अहिंसा का गुणगान किया है। भगवान महावीर और भगवान बुध्द ने तो अहिंसा को अपने जीवन में पूर्णतः अपना कर, समर्पित भाव से अहिंसा का प्रचार किया। उन्होनें अहिंसा को धर्म Jain Education International 2010_03 61 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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